ग्यारहवीं शरीफ का महिना याने रबी उल आखर अहले ईमान के दिलों को मसर्रत से भर देता है क्युकी यह महिना पीरों के पीर , दस्तगीर , रौशन ज़मीर शेख अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह की ज़ाते-पाक से निस्बत रखता है . तमाम औलिया में आपकी शान इसलिए नुमायाँ है कि दीगर औलिया ने तो दीन की ” तब्लीग़ ” की , मगर आपने दीन को ” जिंदा ” कर दिया , जिसकी वजह से आपको ” मोहियुद्दीन ” का लक़ब अता किया गया है . आपकी हयाते-मुबारक का एक वाक्य यहाँ पेश करने का शरफ हासिल कर रहा हूँ , ताकि दरबार-गौसियत में मेरा भी यह अदना सा नजराना कुबूल हो जाये और मेरे लिए दुनिया और अखेर्ट के लिए बाईसे फलाह बन जाये . ///
” एक बार की बात है , आप शुनिज़िया ” के एक कब्रिस्तान में अपने उस्तादे-मोहतरम शेख हम्माद रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार शरीफ पर तशरीफ़ ले गए ( यह तारीख 27 जिल हिज्जा, हिजरी सन 529 की थी ) .और काफी देर तक दुआ फरमाते रहे. यहाँ तक कि धूप तेज़ हो गयी. जब लौटे तो चेहरे पे ख़ुशी के आसार नज़र आ रहे थे. मुरीदीन ने सबब पूछा तो आपने बताया–
” 15 शाबान 499 हिजरी को मैं इन्ही हजरत शेख हम्माद के साथ एक नहर के किनारे एक काफिले के साथ जा रहा था .अचानक शेख हम्माद ने मुझे धक्का दिया और मैं नहर में जा गिरा. मैंने नहर में गिरते गिरते गुसले-जुमा की नियत कर ली और ज्यों-त्यों कर के पानी से निकल आया .”
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आपने मजीद फ़रमाया —” आज जब मैं इस मज़ार शरीफ में आया , जहाँ वही शेख हम्माद दफ़न हैं , तो मैंने देखा कि उन्होंने हीरे जवाहरात के लिबास पहन रखे हैं और सर पर याकूत का ताज रखा हुआ है ,मगर ताज्जुब खेज़ बात यह थी कि उनका दायाँ हाथ मफ्लूज़ था और काम नहीं कर रहा था .मैंने वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि ये वही हाथ है ,जिससे मैंने आपको नहर में धक्का दिया था.उसी की सजा में अल्लाह ने मेरे हाथ को ये सज़ा दी है …अब क्या आप मुझे माफ़ करते हैं ?”
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हुजुर गौसे आज़म ने माफ़ फरमा दिया तो उन्होंने कहा कि अब आप अल्लाह की बारगाह में दुआ कर दीजिये कि मेरा यह हाथ दुरुस्त हो जाये .लिहाज़ा मैं दुआ मांगता रहा और 5000 असहाबे-मज़ार अपने -अपने मजारे-पाक में आमीन कहते रहे ,यहाँ तक कि अल्लाह ने उनका दायाँ हाथ दुरुस्त कर दिया और उन्होंने मुझसे खुश हो कर मुसाफा किया .///”
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बगदाद शरीफ में यह खबर आग की तरह फ़ैल गयी. और जैसा कि मुरीदीन को होता है, शेख हम्माद के मुरिदीन को यह बात बहुत नागवार गुजरी और वे इस घटना की तस्दीक के लिए गौसे-आज़म के दरबार में हाज़िर हो गए.,( जैसा कि इस पोस्ट को पढ़नेकेबादकुछ लोग हवाला मांगने के लिए हाज़िर हो जायेंगे ! ) किसी को कुछ पूछने की हिम्मत तो नहीं हुई , मगर हुजुर गौसे-आज़म ने खुद उनके दिल का हाल जान लिया और उनसे कहा-” आप लोग अपने में से 2 लोगों को मुन्तखब कर लें जो इस वाकये की तस्दीक करें.”
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लिहाज़ा यह मसला शेख युसूफ हमदानी और शेख अब्दुर्रहमान कुर्दी को सौंप दिया गया.शेख हम्माद के मुरीदीन ने कहा–हम आपको जुमा तक कि मोहलत देते हैं कि इन दोनों हजरात के ज़रिये से वाकये की तस्दीक करा दें . हुजुर गौसे-आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया–इंशा अल्लाह आप यहाँ से उठने भी न पाएंगे कि मसला हल हो जायेगा .”
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यह कह कर हुजुर गौसे-आज़म ने अपना सर झुका लिया . तमाम हाज़रीन ने भी अपने सर झुका लिए .इतने में हजरत शेख युसूफ हमदानी उस जगह दौड़ते हुए तशरीफ़ लाये और कहा कि अभी अभी मुझ पर शेख हम्माद ज़ाहिर हुए और कहा कि फ़ौरन अब्दुल कादिर जीलानी के मदरसे में जा कर कह दो कि उन्होंने आप लोगों को मेरे बारे में जो कुछ बताया है , वो सच है ///”
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इतने में दुसरे शख्स हजरत अब्दुर्रहमान कुर्दी भी वहां आ गए और उन्होंने भी कहा कि मुझ पर भी अभी अभी शेख हम्माद तशरीफ़ लाये और उन्होंने भी उस वाकये की तस्दीक की जो हुजुर गौसे आज़म ने फ़रमाया था ///.
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यह सुन कर शेख हम्माद के मुरीदों ने गौसे-आज़म से माफ़ी मांगी और सच्चे दिल से तायब हुए ///
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( यह वाक्य किताब ” बह्ज़तुल असरार , सफा नम्बर 106 पर दर्ज है )
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अपने एक वाज़ में हुजुर गौसे-आज़म फरमाते हैं —
” ऐ कमज़ोर ईमान वाले ! तेरे पास न दुनिया है और न ही आखिरत . ऐसा क्यों ? क्योकि अल्लाह तआला की जनाब में बे-अदबी और उसके अवलिया-अल्लाह पर बुरे इलज़ाम रखने की वजह से है .अवलिया को अल्लाह ने नबियों का नायब बनाया है .नबियों और सिद्दिकों पर जो बोझ डाला गया था , वही बोझ इन अवलिया पर डाला गया है .नबियों के नेक आमाल और उलूम इनके हवाले कर दिए गए हैं .अल्लाह ने इनकी ख्वाहिशात से इन को फना करके अपने साथ खडा कर लिया है . सारी चीज़ों से इनके दिलों को पाक कर दिया गया है. दुनिया और आखिरत और सारी मखलूक को इनके हाथ में दे दिया गया है.अल्लाह ने इन अवलिया-अल्लाह को अपनी कुदरत दिखाई है , इनको अपना हुक्म और इल्म सिखाया है …और इनको कुव्वत और ताक़त बख्शी है /// “
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आगे एक और जगह इरशाद होता है —“
अल्लाह ने मुझ पर कुछ इस तरह इल्हामात किया —
” नबियों और रसूलों को छोड़ कर मेरे कुछ ऐसे नेक बन्दे भी होते हैं ,जिन के हाल की किसी को खबर नहीं होती. न दुनिया वालों को उनका हाल मालूम है और न आखिरत वालों को ,न जन्नत के फरिश्तों को न दोज़ख के . मैंने उनको न जन्नत के लिए पैदा किया है न दोज़ख के लिए ., न सवाब के लिए न अजाब के लिए …उस शख्स को खुशखबरी है ,जिसने उन का यकीन कर लिया , अगरचे उनको न पहचाना .
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और ऐ अब्दुल कादिर जीलानी …तुम भी उन्ही में से एक हो ///
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तू है वो गौस कि हर गौस है शैदा तेरा ,
तू है वो गैस कि हर गैस है प्यासा तेरा ///
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जो वली क़ब्ल थे या बाद हुए , या होंगे ,
सब अदब रखते हैं दिल मेंरे मौला तेरा “
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