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✨सीरतुन्नबी की एक झलक✨
अल्लाह तआ़ला ने सब से पहले अपने नूर से हमारे आक़ा सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम का नूर पैदा फ़रमाया और हुज़ूर के नूर से कायनात की सारी चीज़ें पैदा फ़रमाई !
📚(सीरते रसूले अरबी)
अल्लाह तआ़ला ने ह़ज़रते आदम अ़लैहिस्सलाम की पैदाइश से दो हज़ार साल पहले हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम का नाम अपने नाम के साथ लिखा !
📚(सीरते रसूले अरबी)
हुज़ूर काबे का काबा हैं इसीलिए आप की विलादत पर काबए मुअज़्ज़मा ने ह़ज़रते आमिना रदीअल्लाहो तआ़ला अ़न्हा के मकान या मक़ामे इब्राहीम की त़रफ़ सज्दा किया था !
📚(मदारिजुन्नुबुव्वह)
मेराज की रात प्यारे आक़ा सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम मक्का से बैतुल मुक़द्दस तक बुराक पर, बैतुल मुक़द्दस से आसमाने दुनिया तक मेराज (एक सीढ़ी) पर, वहां से सातवे आसमान तक फ़िरिश्तों के परों पर और वहां से सिदरतुल मुन्तहा तक ह़ज़रते जिब्राईल के बाज़ू पर और सिदरतुल मुन्तहा से अ़र्श तक रफ़ रफ़ पर तशरीफ़ ले गए ! वापसी भी इसी तरतीब से हुई !
📚(बुख़ारी शरीफ़)
प्यारे आक़ा सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम पर दुरूद शरीफ़ पढ़ना हर आक़िल बालिग़ मुसलमान पर उम्र में एक बार फ़र्ज़ हैं !
📚(बुख़ारी शरीफ़)
हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम का इस्मे मुबारक आसमान पर अह़मद, ज़मीन पर मुह़म्मद और ज़मीन के नीचे मह़मूद हैं !
📚(सीरते रसूले अरबी)
हुज़ूर पुरनूर सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम के जिस्म मुबारक और कपड़ों पर मक्खी नही बैठती थी !
कुछ उ़लमाए अजम ने कहा हैं कि मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह में बिना नुक़्ते वाले हुरूफ़ हैं क्यूंकि नुक़्ता मक्खी से मुशाबेह होता हैं और अल्लाह तआ़ला ने आप के जिस्मे पाक के साथ साथ इस्मे पाक को भी इस मुशाबेहत से मह़फ़ूज़ रखा हैं !
📚(तारीख़े ह़बीबुल्लाह)
हुज़ूर सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम को कभी जमाही (उबासी) नही आई !
📚(सीरते रसूले अरबी)
प्यारे आक़ा सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम जिस जानवर पर सवार होते, जब तक सवार रहते जानवर न लीद करता न और कोई गन्दगी !
📚(सीरते रसूले अरबी)
सरवरे आ़लम सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम के पास एक बोरिया था जिसे मोड़ कर आप उसे हुजरे की त़रह़ बना लेते थे और उसी में नमाज़ अदा फ़रमाते थे, दिन में उसी को बिछा कर उस पर तशरीफ़ फ़रमा होते थे !
📚(सीरते रसूले अरबी)
ताजदारे मदीना सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम के पास तीन तलवारें थी,
एक का नाम ज़ुल्फ़िक़ार, दुसरी का नाम मासूर और तीसरी का नाम तबार था !
📚(मदारिजुन्नुबुव्वह)
नबिय्ये रह़मत सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम को चौंतीस (34) बार रूह़ानी मेराज हुई !
📚(सीरते रसूले अरबी)
आका ए दो जहां सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम जिस बिस्तर पर आराम फ़रमाते थे वो बिस्तर चमड़े का था और उस में ख़जूर की मूंझ भरी हुई थी !
📚(बुख़ारी शरीफ़)
मुह़म्मद मुस्त़फ़ा सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम जब खाना खाते थे तो अपनी उंग्लियों को तीन बार चाटते थे और आप ने सारी उम्र न तो चौकी पर बैठ कर खाना खाया और न ही चपाती खाई !
📚(बुख़ारी शरीफ़)
सरवरे आ़लम सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम के अबरुओं (भवों) के बीच एक रग थी जो ग़ुस्से की ह़ालत में सुर्ख़ हो जाती थी !
📚(बुख़ारी शरीफ़)
रह़मतुल्लिल आ़लमीन सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम जब चलते थे तो यूं मह़सूस होता था जैसे आप ऊंचाई से उतर रहे हो !
📚(बुख़ारी शरीफ़)
सरकार सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम की अंगूठी चांदी की थी और उस का नगीना हबश का अक़ीक़ था !
📚(तिरमिज़ी शरीफ़)
प्यारे आक़ा सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम की चादर की लम्बाई चार गज़ की और चौड़ाई ढ़ाई गज़ की थी !
📚(ज़ुरक़ानी)
रसूले अकरम सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम ने जो आख़िरी खाना खाया हैं उस में पुख़्ता (पका हुआ) लहसन पड़ा हुआ था !
📚(बुख़ारी शरीफ़)
मुस्त़फ़ा जाने रह़मत सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम ख़जूर और मक्खन को निहायत मरग़ूब रखते थे !
📚(बुख़ारी शरीफ़)
हुज़ूर पुरनूर सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम का क़रीन यानी साथ रहने वाला शैत़ान भी मुसलमान हो गया था, येह ख़ुसूसिय्यत सरकार के सदक़े में दुसरे नबियों को भी ह़ासिल रही !
📚(बुख़ारी शरीफ़)
सरकारे दो आ़लम सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम का महशर के दिन का सज्दा एक हफ़्ते तक रहेगा जिस में आप ऐसी ह़म्द करेंगे जो कभी किसी ने न की होगी !
📚(बुख़ारी शरीफ़)
हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे वसल्लम को लौकी बहुत पसन्द थी, फ़रमाते थे लौकी मेरे भाई यूनुस अ़लैहिस्सलाम का दरख़्त हैं !
📚(तोह़फ़तुल वाइज़ीन)
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सब चमक वाले उजलों में चमका किए
अन्धे शीशों में चमका हमारा नबी
Asalam-o-alaikum , Hi i am noor saba from Jharkhand ranchi i am very passionate about blogging and websites. i loves creating and writing blogs hope you will like my post khuda hafeez Dua me yaad rakhna.
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