जब काफिरों की कलई खुल जायेगी तब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को हुक्म होगा कि मैदाने महशर में जमा हर शख्स में से जहन्नमियों को अलग कर दो आप अर्ज़ करेंगे किस हिसाब से तो मौला तआला फरमायेगा 1000 में से 999 जहन्नमी, ये सुनते ही लोगों में खलबली मच जायेगी इस वक़्त लोगों को ऐसा ग़म लाहिक होगा कि बच्चे बूढ़े हो जायेंगे औरतों का हमल गिर जायेगा चेहरा युं नज़र आयेगा कि लोग नशे में हों फिर हुक्म होगा कि आज जो जिसकी इबादतों परशतिश करता था उसी से बदला मांग ले तो दुनिया के तमाम काफिरीन अपने अपने बातिल मअबूदों के पीछे लग जायेंगे और वो उनसे भागते होंगे बिल आखिर जब सब इब्लीस लईन को पा लेंगे तो उसकी तरफ जायेंगे और वो भी उन सबसे भागता फिरेगा और सबको जहन्नम के मुहाने पर ले जायेगा और कहेगा कि हमारा और तुम्हारा रब अल्लाह ही है बेशक मैंने तुमको बहकाया मगर ये मलामत तुम खुद को करो मुझको नहीं कि तुम क्यों मेरे बहकावे में आये और मैं तो वहीं जाता हूं जहां मुझे जाना है ये कहकर वो और उसकी पूरी जमाअत के साथ उसके मानने वाले भी हमेशा हमेश के लिए जहन्नम में झोंक दिये जायेंगे,
*(العياذ بالله تعالى)*


रब तआला ने फ़रमाया

*तर्जमा-कंज़ुल ईमान* – होंगे उन्हें देखते हुए मुजरिम आरज़ू करेगा काश इस दिन के अज़ाब से छूटने के बदले में दे दे अपने बेटे.और अपनी बीवी और अपना भाई. और अपना कुनबा जिसमे उसकी जगह है. और जितने ज़मीन में हैं फिर ये बदला देना उसे बचा ले. हरगिज़ नहीं,

यानि उस दिन की मुसीबत ऐसी होगी कि बंदा खुद उससे बचने के लिए अपने किसी भी अज़ीज़ को कुर्बान करने के लिए तैयार होगा चाहे उसके मां-बाप हों या उसके बीवी बच्चे मगर हरगिज़ ऐसा नहीं होगा, और एक रिवायत में जो ये आता है कि उस दिन कोई किसी को नहीं पहचानेगा तो ये उस वक़्त होगा जब तक कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम शफाअते कुबरा का दरवाज़ा नहीं खुलवाते और जब आपकी शफाअत क़ुबूल हो चुकी होगी तब हर आदमी हर आदमी को पहचानेगा वरना हाफिज़ आलिम हाजी अपने अज़ीज़ो की शफाअत कैसे करायेंगे,
मुसलमानो से हिसाब लेने में मौला अपनी रहमतों के दरवाज़े खोल देगा और उनकी छोटी छोटी नेकियों पर उनकी बड़ी बड़ी गलतियां माफ करता होगा हत्ता कि एक बन्दा 99 गुनाहों के दफ्तर के साथ आयेगा और हर दफ्तर इतना बड़ा होगा कि जहां तक निगाह पहुंचे, मौला उससे फरमायेगा कि क्या तुझे ऐसा लगता है कि मेरे फरिश्तों ने तेरे साथ ज़ुल्म किया है जो इतने गुनाहों को लिख दिया तो वो अर्ज़ करेगा नहीं बल्कि ये सब मेरे गुनाह ही हैं वो शर्मिंदा खड़ा होगा कि मौला फरमायेगा कि घबरा मत तेरी एक नेकी हमारे पास है आज तुझ पर हरगिज़ ज़ुल्म ना होगा तो वो कहेगा कि इस एक नेकी से मेरा क्या बनेगा जबकि 99 दफ्तर गुनाहों का सामने है फिर जब तौल होगी तो एक पलड़े में उसके तमाम गुनाह और दूसरे पलड़े में उसकी एक नेकी का कागज़ जिसमे कल्मा-ए शहादत लिखा होगा, रखा जायेगा तो देखने वाले हैरान रह जायेंगे कि कागज़ का वो एक टुकड़ा तमाम दफ्तरों पर भारी निकलेगा क्योंकि सिद्क़ (सच्चे) दिल से लिया गया मौला का नाम हरगिज़ हरगिज़ हल्का नहीं हो सकता,

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