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एक रात हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) मक्का शहर की एक गली से गुज़र रहे थे कि उन्हें एक घर में से किसी आदमी के रोने की आवाज़ आई। आवाज़ में इतना दर्द था कि उस घर में जाने से खुद को रोक नही पाए. अंदर जाकर देखा तो एक नौजवान जो कि हब्शा (अफ्रीका) का मालूम होता था, चक्की पीस रहा है और रो रहा है। ये देख कर हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) ने उससे रोने की वजह पूछी तो उसने बताया कि मैं एक ग़ुलाम हूँ । सारा दिन अपने मालिक की बकरीयां चराता हूँ, शाम को थक कर जब घर आता हूँ तो मेरा मालिक मुझे गेंहू की एक बोरी पीसने के लिए दे देता है जिसको पीसने में सारी रात लग जाती है । मैं अपनी क़िस्मत पर रो रहा हूँ क्योंकि मैं भी तो एक हाड-मांस का इंसान हूँ । मेरा जिस्म भी आराम मांगता है, मुझे भी नींद सताती है लेकिन मेरे मालिक को मुझ पर ज़रा भी तरस नहीं आता। क्या मेरे मुक़द्दर में सारी उम्र इस तरह रोरो के ज़िंदगी गुज़ारना लिखा है. ये सुन कर हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) ने फ़रमाया कि तुम्हारा मालिक मेरी बात नहीं मानेगा, वरना में उसको कह कर तुम्हारे काम के बोझ को कम करवा देता, लेकिन मैं तुम्हारी थोड़ी मदद कर सकता हूँ कि तुम सो जाओ और मैँ तुम्हारी जगह पर चक्की पीसता हूँ । ये सुनकर वो ग़ुलाम बहुत ख़ुश हुआ और शुक्रिया अदा करके सो गया और हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) रात भर जाग कर उसके बदले का काम करते रहे, दूसरे दिन फिर आपने ऐसा ही किया किया और उस ग़ुलाम को सुला कर उसकी जगह चक्की पीसते रहे । तीसरे दिन भी यही हुआ कि आप उस ग़ुलाम की जगह सारी रात चक्की पीसते और सुबह को ख़ामोशी से अपने घर चले जाते, चौथी रात जब आप वहाँ गए तो उस ग़ुलाम ने कहा। आप कौन हो? और मेरा इतना ख़्याल क्यों कर रहे हो? हम गुलामों से ना किसी को कोई डर होता है और ना कोई फ़ायदा। तो फिर आप ये सब कुछ किस लिए कर रहे हो, हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) ने फ़रमाया कि मैं ये सब इंसानी हमदर्दी की वजह से कर रहा हूँ, इसके अलावा मुझे तुम से कोई ग़रज़ नहीं। उस ग़ुलाम ने – कहा कि आप कौन हो ?, हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) क्या तुमने सुना है के मक्का शहर में एक शख़्स है जो खुद को ईश्दूत (अल्लाह का दूत) कहता है, उस ग़ुलाम ने कहा – हाँ मैंने सुना तो है कि एक शख़्स जिस का नाम मुहम्मद है, वो अपने आपको ईश्दूत कहता है. ये सुन कर हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) ने फ़रमाया कि मैं वही मुहम्मद हूँ। ये सुन कर उस ग़ुलाम ने कहा कि अगर आप ही वो नबी (ईश्दूत) हैं तो मुझे कलिमा पढ़ाईए और अपना अनुयायी बना लीजिये, क्योंकि इतना अच्छा व्यवहार और दयालु व्यवहार किसी ईश्दूत का ही हो सकता है. जो गुलामों का भी इतना ख़्याल रखे. फिर दुनिया ने देखा कि उस ग़ुलाम ने बहुत तकलीफें और मुसीबतें बर्दाश्त की लेकिन हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) का साथ नहीं छोड़ा। जब ग़ुलाम के मालिक को पता चला के मेरा ग़ुलाम हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) का अनुयायी हो गया है तो उसने पहले से ज़्यादा तकलीफ देना शुरू कर दिया, उनको तपती हुई रेत पर लेटा कर उनके सीने पर एक बड़ा पत्थर रख देता था. लेकिन उस ग़ुलाम को जान देना तो गवारा था लेकिन इतने दयालु और अच्छे व्यवहार के मालिक का साथ छोड़ना गवारा ना था. जब हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) को पता चला के ग़ुलाम का मालिक उनको बहुत ज़्यादा कष्ट दे रहा है तो, तो उसके मालिक को ग़ुलाम की कीमत देकर छुड़वाने की कोशिश की, लेकिन मालिक नहीं माना, बाद में ग़ुलाम की दोगुना कीमत देकर उनको आज़ाद करवाया। ये ग़ुलाम उस समय एक असहाय आदमी था, लेकिन हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) का अनुयायी बनने के बाद दुनिया में उनका नाम हो गया और दुनिया के अंत तक उनका नाम सब याद रखेंगे। आज दुनिया इन्हे ‘बिलाल ए- हब्शी; (रज़ी अल्लाह अन्ह) के नाम से जानती है । हज़रत मोहम्मद (सल-लल-लाहु अलयही वसल्लम) की हमदर्दी और मुहब्बत ने (अल्लाह के हुक्म से) एक ग़ुलाम को ऐसा बना दिया जिसके आगे बड़े-बड़े बादशाह भी छोटे हो गए.

As-salam-o-alaikum my selfshaheel Khan from india , Kolkatamiss Aafreen invite me to write in islamic blog i am very thankful to her. i am try to my best share with you about islam.
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