
काबा मुअज्ज़मा की तरफ पाँव करके सोना बल्कि उस तरफ पाँव फैलाना सोने में हो , ख्वाह जागने में , लेटे में हो , ख्वाह बैठे में हर तरह मम्नूअ व बेअदबी है . सोने में सुन्नत यूं है कि कुतुब की तरफ सर करे और सीधे करवट पर सोए कि सोने में भी मुँह काबा ही को रहे .हाँ वह मरीज़ जिसमे उठने बैठने की ताक़त नहीं उसकी नमाज़ के लिए एक तरीका यह रखा गया है कि पाइंती किब्ला की तरफ हो और सर के निचे उंचा तकिया रख दें कि मुँह काबा मुअज्ज़मा को हो , फिर यह ज़रुरत के वास्ते है . ग़ैर मरीज़ अपने आप को उस पर क़यास नहीं कर सकता है.



हदीस शरीफ में है अल्लाह के रसूल ने इरशाद फरमाया , जब तुम में से कोई रफए हाजत करे तो किब्ले की तरफ न मुँह करे और न पीठ । ( मिश्कात सफहा ४२ ) इसके बरखिलाफ अवाम तो अवाम बाज खवास अहले इल्म तक में इस बात का ख्याल नहीं रखा जाता और पाखाना पेशाब के वक्त आम तौर से लोग किल्ले की जानिव मुँह या पीठ कर लेते है । घरों में लैटरीन बनाते वक्त मुसलमानों को खास तौर से इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि बैठने की सीट इस तरह लगाई जाए कि इस्तिन्जा करने वाले का न मुँह काबे की तरफ हो और न पीठ । हिन्दुस्तान में लटरीन की सीटें उत्तर – दक्खिन रखी जायें , पूरब और पच्छिम न रखी जायें । अगर किसी के यहाँ गलती से लैटरीन की सीट पूरब पच्छिम लगी हो तो हजार या पाँच सौ रुपयों के खर्च की फिक्र न करे । फौरन उसे उखड़वा कर उत्तर – दक्खिन कराए । हो सकता है कि अल्लाह को उसकी यह नेकी पसन्द आ जाए और उसकी बख्शिश हो जाए । दरअस्ल अदब बेहद जरूरी है । बे अदबी से महरूमी आती है खैर व बरकत उठ जाती है । नहूसत इन्सान को घेर लेती है । और अदब से खैर व बरकत आती है रहमत बरसती है । जिन्दगी पुर सुकून और बारौनक हो जाती है ।


कुछ जगहों पर लोग समझते हैं कि जिस वुजू से नमाज जनाजा पढ़ी हो उससे दूसरी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती हालांकि यह गलत और बे अस्ल बात है । बल्कि इसी वुजू से फर्ज हों या सुन्नत व नफ्ल हर नमाज पढ़ना ठीक है
#मय्यत_को_गुस्ल_देने_के_बाद_गुस्ल_करना
मय्यत को गुस्ल देने के बाद गुस्ल करना अच्छा है लेकिन जरूरी नहीं कि जिस ने मय्यत को गुस्ल दिया हो वह बाद में खुद गुस्ल करे इसको जरूरी ख्याल करना गलत है ।
#नोट:
#आशिके_रसूल_ﷺ_कभी_नमाज़_क़जा़ #नहीं_करते।

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अल्लाह पाक हम सबको नेक राह पर चलने की और नेक अमल करने की तौफीक अता फरमाए आमीन
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