एत्काफ रमजान के दिनों में होता है एत्काफ का बहुत फजीलत है रमजान के 20 रोज़ा मगरिब के वकत से एत्काफ शुरू होता है और ईद के चाँद नज़र आ जाने तक रहता है ये इत्काफ 10 दिन का होता है खुसनसीब वह होता है जो इसे पूरा करता है रात व् दिन मस्जिद के नुरानी माहोल में रह कर छोटे बड़े गुनाहों से बचते है और जिक्रे तिलावल दुरुद शरीफ,नात शरीफ पढ़कर अपने गुनाहों को माफ़ करवाते है इत्काफ के बहुत बड़ी फजीलत है. जिनमे से कुछ यहाँ बयान की है
एत्काफ क्या है
एत्काफ की नियत से अल्लाह के वास्ते मस्जिद में ठहर जाने का नाम एत्काफ है
एत्काफ तिन किस्म का होता है
1.एत्काफ वाजिब यानि मन्नत की एत्काफ
2.एत्काफ सुन्नत मोकिदा
3.एत्काफ मुस्तहब
एत्काफ वाजिब यानि मन्नत का एत्काफ क्या है
ये नज़र का एत्काफ है जिसे किसे ने ये मन्नत मानी के फला काम हो जायेगा तो मै एक दिन या दो दिन या तिन दिन का एत्काफ करूँगा तो ये एत्काफ वाजिब है इसका पूरा करना जरुरी है और एत्काफ करने के लिए रोज़ा रखना सर्त है बगैर रोज़ा के एत्काफ वाजिब सही नहीं है.
एत्काफ सुन्नत मुकिदा क्या है
एत्काफ सुन्नत मोकिदा ये रमजान के पुरे असरा आखिरह यानि आखिर के दस दिन में किया जाए. यानि बीसवी रमजान को सूरज डूबते वक्त एत्काफ की नियत से मस्जिद में दाखिल हो और तीसवी रमजान को सूरज डूबने के बाद या उन्तीसवे रमजान को चाँद होने के बाद मस्जिद से निकले. ये एत्काफ सुन्नत मोकिदा किफया है अगर सब छोड़ देंगे तो गुनाहगार होंगे और एक ने भी ये एत्काफ करली तो सब लोग गुनाह से बच जायेंगे. इस एत्काफ में भी रोज़ा रखना सर्त है मगर रमजान के रोज़ा ही काफी है इसी से काम चल जाएगा.
एत्काफ मुस्तहब क्या है
एत्काफ वाजिब यानि मन्नत का एत्काफ और एत्काफ सुन्नत मोकिदा के आलावा जो एत्काफ किया जाता है वह एत्काफ मुस्तहब है. एत्काफ मुस्तहब के लिए रोज़ा रखना जरुरी नहीं बलके ये एत्काफ थोड़ी देर का भी हो सकता है. मस्जिद में जब जब जाए इस एत्काफ की नियत कर ले चाहे थोड़ी ही देर मस्जिद में रह कर चला आए. जब मस्जिद से चला आएगा तो एत्काफ भी ख़तम हो जायेगा नियत में सिर्फ इतना कहना काफी है के मै ने खुदा के वास्ते एत्काफ मुस्तहब की नियत की.
मस्ला- मर्द के एत्काफ के लिए मस्जिद जरुरी है और औरत के लिए एत्काफ अपने घर की उस जगह में एत्काफ करे जो जगह इसने इस ने नमाज़ के लिए मोकरर की हो.
मस्ला- मोताक्किफ यानि एत्काफ करने वाला को मस्जिद से बिना काम के निकलना हराम है और अगर मस्जिद से निकला तो एत्काफ टूट जायेगा चाहे भूल कर ही निकला हो जब भी एत्काफ टूट जायेगा. औरत अगर अपनी एत्काफ की जगह से निकला तो एत्काफ टूट जायेगा चाहे घर ही में रहे.
और मस्जिद से निकलने की दो वजह है
1. तबई – तबई वजह ये है जैसे पैखाना, पेसाब, इस्तिंजा, फ़र्ज़, गुसल, वजू(जबके गुसल और वजू के लिए मस्जिद में इंतजाम न हो ).
2. सरई – सरई वजह ये है जैसे ईद या जुम्मा की नमाज़ के लिए जाना. अगर एत्काफ वाली मस्जिद में जमाअत न होती हो तो जामाअत के लिए जा सकते है इन वजह के आलावा किसी और वजह से थोड़ी देर के लिए भी एत्काफ की जगह से बाहर जायेगा तो एत्काफ नहीं होगा अगर भूल कर ही जाए.
मस्ला– मोताक्किफ यानि एत्काफ करने वाला रात और दिन मस्जिद ही में रहे वही खाए पिए और सोए इन कामो के लिए मस्जिद से बाहर होगा तो एत्काफ टूट जाएगा.
मस्ला– मोताक्किफ यानि एत्काफ करने वाला के सिवा दूसरा कोई मस्जिद में खाने पिने सोने की इजाजत नहीं और अगर ये काम करना चाहे तो एत्काफ की नियत करके मस्जिद में जाये और नमाज़ पढ़े या जिक्रे इलाही करे फिर ये काम कर सकता है मगर खाने पिने में ये एत्हात करे की ये मस्जिद है यानि मस्जिद का ख्याल रखते हुए खाना खाए.
मस्ला– एत्काफ करने वाला न चुप रहे और न बात करे बलके कुरान शरीफ की तिलावत करे और हदीस शरीफ की करायत करे और दुरुद शरीफ की कसरत करे यानि बार बार पढ़े और इल्मे दिन सीखे और अन्बियाये व् औलियाये सालेहीन की हालात पढ़े या दिनी बात लिखे.
मस्ला- अगर नफिल एत्काफ तोड़ दी तो उसकी कज़ा नहीं और सुन्नत मोकिदा एत्काफ अगर तोड़ दिया तो जिस दिन तोडा फ़क्त उस एक दिन की कज़ा पूरी दस दिनों की कज़ा वाजिब नहीं और मन्नत का एत्काफ तोडा तो अगर किसी मोकरर महिना की मन्नत थी तो बाकि दिनों की कज़ा करे वर्ना फिर से एत्काफ करे.
मस्ला– एत्काफ जिस वजह से भी टूटे उसकी कज़ा वाजिब है.
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