हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती एक मुद्दत से ही हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी र0अ0 से अकीदत रखते थें अब इस कदर शेदाई हो गये कि हर वक्त सफर हो या कियाम (ठहराव) हो अपने गुरू की खिदमत में हाजिर रहते। उनका बिसतर, तकिया, पानी का मशकीजा अज्ञैर दूसरा जरूरी सामान अपने सर और कन्धों पर रखकर हमसफर (साथ-साथ) होते थे। हजरत ख्वाजा गरीब नवाज र0 अ0 बीस साल तक अपने पीर (गुरू) की खिदमत में रहकर अल्लाह तआला की इबादत करते रहे। और उसी अर्स में मारफत व हकीकत की सभी मंजिलें तय (पूरी) कर ली और फकीरी से अच्छी तरह वाकिफ हो गये। आपने पीर व मुर्शिद से जो नसीहत भरी बातें सुनी और हैरतअंगेज करामात देखे उनमें से कुछ का बयान खुद ख्वाजा बुजुर्ग के शब्दो में पेश किया जाता है-
एक बार मैं अपने पीर हजरत ख्वाजा हारूनी र0अ0 के साथ सिवस्तान के सफर में था कि एक दिन हम एक खानकाह (सोमआ) में पहुंचे। वहां एक बुजुर्ग रहते थे। उन बुजुर्ग का नाम सदरूद्दीन अहमद सिवस्तानी था। ये बडे ही पहंचे हुए बुजुर्ग थे। मैं कई दिन तक उनकी खिदमत में रहा। जो शख्स उनकी खिदमत में हाजिर होता खाली हाथ वापस नही जाता। आप अन्दर से कोई चीज लाकर देते और फरमाते कि मेरे हक में दुआ करो कि मैं ईमान सलामत लेकर जाऊं।
यह बुजुर्ग जिस वक्त कब्र की सख्ती और मौत का हाल सुनते तो खौफे खुदा से बेद की तरह कांपने लगते और आंखो से खून के आंसू जारी हो जाते। सात-सात दिन तक लगातार रोते रहते और इस तरह रोते कि देखने वाले भी रोने लगते। जब मैं आपकी सुकून हुआ तो मेरी तरफ ध्यान देकर फरमाया-‘ऐ अजीज! जिसके सामने मौत खड़ी हो और जिसका दुश्मन मौत का फरिश्ता हो उसका सोने और खुश रहने से क्या काम ? और फिर फरमाया-‘अगर तुम्हें उन लोगों का हाल मालूम हो जाये जो जमीन के नीचे सोते है और बिच्छू भरी कोठरी में बन्द है तो इस तरह पिघल जाओगे जिस तरह पानी में नमक पिघल जाता है।‘ इसके बाद फरमाने लगे।
आज तीस साल के बाद तुम्हें यह वाकिया (घटना) सुनाता हूं कि बसरा के कब्रिस्तान में एक कब्र के पास मेरे साथ एक बुजुर्ग बैठे हुए थे। उस कब्र के अन्दर मुर्दे पर अजाब नाजिल हो रहा था क्योंकि वह बुजुर्ग साहिबे कश्फ थे, उन पर कब्र का हाल रौशन हो गया। यह देखकर जोर से नारा मारा और जमीन पर गिर पड़े। हमने उठाना चाहा मगर उनकी रूह जिस्म से परवाज कर चुकी थी और देखते-देखते थोड़ी देर में इनका जिस्म नमक की तरह पिघलकर पानी बन कर बह गया। जो खौफ उन बुजुर्ग में देखा वह आज तक किसी में न देखा न सुना।‘
उसके बाद आपने अपनी आदत के मुताबिक मुझे भी दो खजूर देकर विदा किया।
एक दिन हजरत ख्वाजा उसमान हारूनी र0 अ0 ने ख्वाजा गरीब नवाज र0 अ0 की तरफ मुखातब होकर फरमाया–कल कियामत के दिन, जितने अम्बिया, औलिया और मुसलमान है, जो कोई नमाज की जिम्मेदारियों से सलामती के साथ निकल गया, वह बच गया और जिसने नमाज की पाबन्दी नही की उसे दोजख में रहना होगा।
अल्लाह तआला कुरआन मजीद में फरमाया है-
फ-वैलुल्लित मुाल्लीनल्लजी-न हुम अन सलातिहिम साहून0
तर्जुमा-वेल है, उन नमाजियों के लिए जो नमाज में सुस्ती करते है। इसकी तशरीह (सविस्तार) इस तरह की है कि वेल दोजख में एक कुआ है जिसमें बहुत दर्दनाक अजाब रखाग या है। जो लोग नमाज में सुसती करते है और वक्त पर अदा नही करते वह अजाब उन्ही लोगों के लिए है। फिर आपने वेल के बारे में कहा- ‘वेल सतर हजार बार खुदा-ए तआला से अर्ज करता है कि यह अजाबे सख्त किस गिरोह पर किया जायेगा ?‘ हुक्म बारी तआला होता है कि ‘यह आवाज उन लोगो के लिए है जो अपनी नमाजे वक्त पर नही पढ़ते।‘
एक बार मै और पीर व मुर्शिद सफर करते हुए दरया-ए-दजला के किनार पहंुचे तो दरिया में तूफान आया हुआ था। मुझे फिक्र (चिन्ता) हुई, हजरत ने फरमाया-‘आंखे बन्द करों।‘ थोडी दे बाद जो आंखे खोली तो मैं और हजरत मुर्शित दजला के उस पार थे। मैने अर्ज किया-‘इसे किस तरह पा किया।‘ इर्शाद हुआ-‘पांच बार अलहम्दु शरीफ पढ़कर दरिया से पार उतर आये।‘
एक बार मै अपने मुर्शिद हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी र0 अ0 के साथ सफर में था। रास्ते में ख्वाजा बहाउद्दीन र0 अ0 से मुलाकात हो गई। उनका दस्तूर था कि जो शख्स उनकी खिदमत में हाजिर होता, खाली हाथ नही जाता। अगर कोई नंगा आ जाता तो आप अपने कपड़े उतार देना चाहते, उसी वक्त फरिश्ते अच्छा लिबास हाजिर कर देते। हम कुछ दिन उनकी महफिल में रहे। जब हम चलने लगे तो आपने नसीहत फरमाई- ‘जो कुछ तुझे मिले उसे अपने पास न रखना बल्कि खुदा की राह में दे देना, ताकि खुदा के दोस्तों में तुम्हारा शुमार (गिनती) हो।‘
एक बार दुरवेशों की एक महफिल में अपने पीर व मुर्शिद हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी र0 अ0 की खिदमत में हाजिर था, इतने में एक बूढा शख्स आपकी खिदमत में आया। उसने आपको सलाम किया, पीर मुर्शिद ने खडे़ होकर सलाम का जवाब दिया औश्र बढ़े अदब से बिठाया। उसने अर्ज किया-‘मेरा लड़का तीस साल हुए मुझसे जुइा है।‘ पता नही जिन्दा है या नही। मैं उसकी जुदाई से निढाल हो गया हूं। आप मेरी मदद फरमायें, उसकी वापसी, तन्दुरूस्ती और सलामती के फातिहा इख्लास की इल्लिजा है।‘ हजरत ने जब ये बात सुनी तो, मुराकाबे में (ध्यान मगन) सर झुका दिया, थोडी देर बाद सर उठाकर हाजरीन से फरमाया- इस पीर मर्दे के लड़के की सलामती के लिए फातिहा इख्लास पढ़ों।‘ अतः फातिमा इख्लास पढ़ी गई। इसके बाद आपने उस बूढ़े से फरमाया-‘आप जाये और जिस वक्त आपका लड़का मिल जाये उसको साथ लेकर मेरी मुलाकात को आयें।‘
अभी वह बूढ़ा शख्स रास्ते में ही था कि एक शख्य ने आकर खबर दी कि आपका लड़का मिल गया। घर पहुंचकर लड़के को सीने से लगाया और उलटे पांव लड़के को लकर हुजूर की खिदमत में हाजिर हुआ। ख्वाजा उस्मान हारूनी र0 अ0 ने उस लड़के से मालूम किया कि मियाँ तुम कहां थे ? उसन अर्ज किया-‘समुन्द्र में एक नाव पर था और नाव के मालिक ने मुे जंजीरो से बांध रखा था। आज तक दुरवेश आपके हमशक्ल बल्कि आप ही थे, तशरीफ लाये और जंजीरो को तोड़कर मेरी गरदन जोर से पकड़ी और अपने आगे खड़ा करके हुक्म दिया कि अपने पांव मेरे हाथ पर रखो और आंखे बन्द करो।‘ थोडी देर बाद फरमाया-‘आंखे खोलो।‘ जिस वक्त मैने आंखे खेली तो अपने आपको तन्हा आपने मकान के दरवाजे पर खड़ा पाया। इतना कह कर वह कुछ और कहना चाहता था मगर हजरत ने इशारे से चुप रहने के लिए कहा। बूढे ने यह सुनकर हजरत के कदमों पर सिर रख दिया और बाप बेटे चले गये।
हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती र0 अ0 पूरे बीस साल तक अपने पीर व मुर्शिद हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी र0 अ0 की खिदमत में हाजिर रहे। जान व दिल से पीर के हर हुक्म का पालन करते रहे। आपकी इस जान-तोड़ खिदमत के बदले हजरत शेख ख्वाजा उस्मान हारूनी र0 अ0 ने ऐसी नेमत और दौलत अता फरमाई जो हद व हिसाब से बाहर है अतः मारफत व हकीकत की तमाम बुजुर्गाने अजीम से हासिल की थी अपने हिोनहार मुरीद हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती को अता फरमाकर नसीहत फरमाई7 ‘ऐ मुईनुद्दीन! अललाह की मख्लूक से किसी चीज का लालच न करना। कभी भी आबादी में न ठहरना, और किसी से कुछ न मांगना।‘
ख्वाजा गरीब नवाज र0 अ0 फरमाते है कि इसके बाद पीर व मुर्शिद ने फातिमा पढ़कर मेरे सर और आंखो का चूमा और फरमाया-‘तुझे खुदा के सुपुर्द किया। मुईन्ुद्दीन हक का महबूब है और मुझको इसकी मुरीदी पर बड़ा नाज है।‘
Source:http://garibnawaz.net/HistoryInHindi/khwaja-peer-ki-kidmat-me/
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