रोज़ाना की वाजिब नमाज़ों के बाद, अहलेबैत द्वारा सिखाई गयी दुआ या पवित्र क़ुरान क़ो पढ़ना “ताक़ी’ब” कहलाता है! जिसका लफ़’ज़ी मानी “समय बिताना” है ! रोज़ाना की नमाज़ के बाद ताक़ी’बात पढ़ना “सुन्नत मुवक’किदाह” (जिसे ज़ोरदार तरीक़े सिफारिश की गयी हो) है
अ) ईमाम बाक़र (अ:स) ने कहा के वाजिब नमाज़ के बाद तस्बीह-ए-फ़ातिमा से बेहतर कोई दुआ नहीं है! अगर ईस से बेहतर कोई और दुआ होती जो अधिक प्रभावी, और अल्लाह की हम्द क़ो कोई दूसरा तरीका होता तो पैग़म्बर (स:अ:व:व) इसे अपनी प्यारी बेटी जनाब फ़ातिमा ज़हरा (स:अ) क़ो ज़रूर बताते! ईमाम जाफ़र सादीक़ (अ:स) ने कहा : तस्बीहे फ़ातिमा क़ो हर नमाज़ के बाद पढ़ना, हज़ार बेहतर कामों से बढ़कर है!:-
अल्लाहो अकबर (34 बार)
अलहम्दु लिल्लाह (33 बार)
सुभान अल्लाह (33 बार)
b) तस्बीह पढ़ने के बाद चाहिए की एक बार ला इलाहा इलल-लाह कहे لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ
c) ईमाम बाक़र (अ:स) फ़रमाते हैं की अगर कोई अपने वाजिब नामज़ पूरी कर ले फिर 3 बार यह आयत पढ़े तो अल्लाह उसके सारे गुनाहों क़ो माफ़ कर देगा!
”अस’तग़ -फ़ा’रल्लाह अल’लज़ी ला इलाहा इल्ला हुवल हय्यल क़य’युमो ज़ुल’जलाल ए वल इक्रामे व आतुबे इलैह
मै ईस ख़ुदा से बख्शीश चाहता हूँ जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, वो जिंदा व पा’इन्दा है (हमेशा ज़िंदा रहने वाला है), और मै इसके हुज़ूर तौबा करता हूँ |
ईमाम सादीक़ (अ:स) फ़रमाते हैं की अगर कोई शख्स अपनी वाजिब नमाज़ों के बाद 30 बार “सुभान अल्लाह” पढ़े तो अल्लाह उसके सारे गुनाहों क़ो माफ़ कर देगा!
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