नमाज में जो बातें मकरूह हैं वह ये है
कपड़े या बदन या दाढ़ी मूंछ से खेलना ,
कपड़ा समेटना ,
जैसे सज्दे में जाते वक़्त आगे या पीछे से दामन या चादर या तहबन्द उठा लेना ।
कपड़ा लटकाना यानी सर या कन्धे पर कपड़ा चादर वगैरह इस तरह डालना कि दोनों किनारे लटकते हों ।
किसी एक आस्तीन को आधी कलाई से ज्यादा चढ़ाना , दामन समेट कर नमाज पढ़ना ।
पेशाब पाखाना मालूम होते वक़्त या गलबए रियाह के वक़्त नमाज पढ़ना ।
मर्द का सर के बालों का जूड़ा बांध कर नमाज पढ़ना ।
उंगलियां चटखाना ,
इधर उधर मुह फेर कर देखना ।
आसमान की तरफ निगाह उठाना ।
मर्द का सज्दे में कलाईयों को जमीन पर बिछाना ।
अत्तहिय्यात में या दोनों सज्दों के दर्मियान दोनों हाथों को रान पर रखने की बजाय जमीन पर रख कर बैठना ।
किसी शख्स के मुंह के सामने नमाज़ पढ़ना ।
चादर में इस तरह लिपट कर नमाज पढ़ना कि बदन का कोई हिस्सा यहां तक कि हाथ भी बाहर न हो ।
पगड़ी इस तरह बांधना कि बीच सर पर पगड़ी का कोई हिस्सा न हो ।
नाक और मुंह को छुपा कर नमाज पढ़ना ।
बे जरूरत खंकारना ।
कस्दन जमाही लेना ,
अगर खुद ही जमाही आ जाये । तो हरज नहीं ।
जिस कपड़े पर जानदार की तस्वीर हो उसे पहन कर नमाज़ पढ़ना , तस्वीर का नमाजी के सर पर यानी छत में होना या ऊपर लटकी हुई होना या दायें बायें दीवार में बनी या लगी होना ।
या आगे पीछे तस्वीर का होना । जेब या थैली में तस्वीर छुपी हुई हो तो नमाज में कराहत नहीं । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 429 आलमगीरी जि . 1 स . 99 ) सज्दा गाह से कंकरियां हटाना मगर जब कि पूरे तौर पर सज्दा न हो सकता हो तो एक बार हटा देने की इजाज़त है । नमाज़ में कमर पर हाथ रखना । नमाज के इलावा भी कमर पर हाथ न रखना चाहिए । कुरता , चादर मौजूद होते हुए सिर्फ पाजामा या तहबन्द पहन कर नमाज़ पढ़ना । उलटा कपड़ा पहन कर नमाज पढ़ना ।
नमाज में बिला उज पालती मार कर बैठना । कपड़े को हद से ज्यादा लम्बा करके नमाज़ पढ़ना । मसलन इमामा का शमला इतना लम्बा रखे कि बैठने में दब जाये या आस्तीन इतनी लम्बी रखे कि उंगलियां छुप जायें । या पाजामा और तहबन्द टखने से नीचे होना । नमाज़ में दायें बाये झूमना | उलटा कुरआन मजीद पड़ना । इमाम से पहले मुकतदी का रुकूअ व सज्दा में जाना या इमाम से पहले सर उठाना । यह तमाम बातें मकरूह तहरीमी हैं । अगर नमाज में यह मकरूहात हो जाये तो उसको दोहरा लेना चाहिए । ( दुर्रे मुख़्तार जि . 1 429 व आलमगीरी स . 99 )
मसलाः – नमाज में टोपी गिर पड़ी तो एक हाथ से उठाकर पर रख लेना बेहतर है । और अगर बार बार गिर पड़ती हो तो न उठा अच्छा है ।
मसला : – सुस्ती से नंगे सर नमाज पढ़ना यानी टोपी से बोझ मालुम होता है या गर्मी लगती है इस वजह से नंगे सर नमाज पढ़ता है तो यह मकरूह तन्जीही है । और अगर नमाज को हकीर ख़्याल करके नंगे सर पटे जैसे यह ख्याल करे कि नमाज़ कोई ऐसी शानदार चीज नहीं है जिसके लिए टोपी या पगड़ी का एहतमाम किया जाये तो यह कुफ्र है । और अगर खुदा के दरबार में अपनी आजिजी और इन्कसारी जाहिर करने के लिए नंगे सर नमाज पढ़े तो इस नीयत से नंगे सर नमाज पढ़ना मुस्तहब होगा । खुलासा यह है कि नीयत पर दारोमदार है । ( दुर्रे मुख्तार व रद्दुलमुहतार जि . 1 स . 431 )
मसला – जलती हुई आग के सामने नमाज़ पढ़ना मकरूह है । लेकिन चराग या लालटेन के सामने नमाज़ पढ़ने में कोई कराहत नहीं । ( दुर्रे मुख्तार व रद्दुलमुहतार जि . 1 स . 438 )
मसलाः – बगैर उज्र हाथ से मक्खी , मच्छर उड़ाना मकरूह है । ( आलमगीरी जि . 1 स . 102 )
मसलाः – दौड़ते हुए नमाज़ को जाना मकरूह है । ( रद्दलमुहतार )
मसला : – नमाज में उठते बैठते आगे पीछे पाँव हटाना मकरूह है ।
नमाज़ तोड़ देने के अअ़्ज़ारः – यानी किन किन सूरतों में नमाज़ तोड़ देना जाइज हैं –
मसला : – कोई डूब रहा हो या आग से जल जाएगा या अन्धा कुएं में गिर पड़ेगा तो इन सूरतों में नमाज़ी पर वाजिब है कि नमाज तोड़ कर उन लोगों को बचाए । यूंही अगर कोई किसी को कुत्ल कर रहा हो और वह फरियाद कर रहा हो और यह उसको बचाने की कुदरत रखता हो तो उस पर वाजिब है कि नमाज तोड़ कर उसकी मदद के लिए दौड़ पड़े । ( दुर्रे मुख्तार व रहुलमुहतार जि . 1 स . 440 )
मसला : – पेशाब पाखाना काबू से बाहर मालूम हुआ या अपने कपड़े पर । इतनी कम नजासत देखी जितनी नजासत के होते हुए नमाज हो सकती है । या नमाज़ी को किसी अजनबी औरत ने छू दिया तो इन तीनों सूरत में नमाज तोड़ देना मुस्तहब है । ( दुर्रे मुख्तार व रद्दुलमुहतार जि . 1 स . 440 )
मसला : – साँप वगैरह मारने के लिए जब कि काट लेने का सही डर हो तो ममाज़ तोड़ देना जाइज़ है । ( दुर्रे मुख्तार स . 440 )
मसला : – अपने या किसी के एक दिरहम के नुकसान का डर हो जैसे दूध उबल जाएगा या गोश्त तरकारी जल जाने का डर हो तो इन सूरतों में नमाज तोड़ देना जाइज़ है । इसी तरह एक दिरहम की कोई चीज़ चोर ले भागा तो नमाज़ तोड़ कर उसको पकड़ने की इजाजत है । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 440 )
मसलाः – नमाज़ पढ़ रहा था कि रेल गाड़ी छूट गई और सामान रेल गाड़ी में है । या रेल गाड़ी छूट जाने से नुकसान हो जाएगा तो नमाज़ तोड़ कर रेल गाड़ी पर सवार हो जाना जाइज़ है ।
मसला : – नफ्ल नमाज़ में हो और मां बाप पुकारें और उनको उसका नमाज़ में होना मालूम न हो तो नमाज़ तोड़ दे और जवाब दे । बाद में उस नमाज़ की कुजा पढ़ ले । ( दुर्रे मुख्तार व रद्दलमुहतार जि . स . 440 )
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