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मौलाना रूमी ने एक वाक़िया लिखा है:

किसी साहब के घर रात को चोर घुस गया, साहेब-ए-ख़ाना की आँख खुली, रात की तारीकी में उठ कर इधर उधर देखा कुछ नज़र ना आया, फिर बिस्तर पर जाकर लेट गया…।
चोर ने देखा कि साहेब-ए-ख़ाना सो गया है, तो वो थोड़ा सा आगे बढ़ा मगर किसी चीज़ से टकरा गया… आवाज़ हुई तो साहेब-ए-ख़ाना फिर उठ बैठा और अंधेरे में इधर उधर नज़रें फाड़ फाड़ कर देखने लगा…। अब साहेब-ए-ख़ाना को यक़ीन हो चला था कि घर में कोई चोर घुस आया है…। साहेब-ए-ख़ाना ने सोचा क्यों ना चिराग़ रौशन कर के घर को देखा जाए ताकि तसल्ली हो…।

अब साहेब-ए-ख़ाना ने क़रीब रखे चिराग़ को जलाने के लिए पत्थरों को रगड़ा (पहले ज़माने में दो पत्थरों को थोड़ी सी रूई पर रगड़ते थे, पत्थर रगड़ने से चिंगारी रूई पर गिरती, इस तरह बार बार पत्थरों को रगड़ा जाता, जब आठ दस चिंगारियाँ रूई पर गिरतीं तो रूई दहकने लगती, अब फिर उस रूई को फूंकें मारते तो रूई आग पकड़ लेती, इस तरह आग जलाई जाती थी) अब जब साहेब-ए-ख़ाना ने आग जलाने के लिए पत्थरों को रगड़ना शुरू किया तो चोर समझ गया कि साहेब-ए-ख़ाना क्या करना चाहते हैं…।
लिहाज़ा चोर दबे पाँव आकर साहेब-ए-ख़ाना के सामने बैठ गया, साहेब-ए-ख़ाना पत्थर रगड़ते, नन्ही सी चिंगारी रूई पर गिरती, सामने बैठा चोर उस चिंगारी को अगली चिंगारी गिरने से पहले बुझा देता…। काफ़ी देर साहेब-ए-ख़ाना आग जलाने की कोशिश करते रहे, मगर सामने बैठा चोर चिंगारी बुझाता रहा… आख़िरकार तंग आकर साहेब-ए-ख़ाना अपना वहम समझ कर सो गया…। सुबह उठा तो पता चला सारा घर लुट चुका है…।

मेरे अज़ीज़ों! बिलकुल उस चोर की तरह शातिर शैतान हमारे मुक़ाबले में बैठा हुआ है…। हम जब भी कोई नेकी की, ख़ैर की चिंगारी जलाते हैं वो उसे बुझा देता है…। कभी नफ्‍स के ज़रीये, कभी अपनी अय्यारी और मक्कारी से तो कभी लोगों के दिलों में वस्वसे पैदा कर के…।

कभी ख़ुद हमारा नफ्‍स कहता है चल छोड़ यार! ये तू किस काम में लग गया, लोग क्या कहेंगे, रिश्तेदार क्या सोचेंगे, तो कभी शैतान किसी काम को उलट पलट करके कहेगा, देख तू ने वो नेकी की थी, बदले में ये हो गया है… फ़ुलाँ के साथ ख़ैरख़ाही की थी, ये सिला मिला है तुम्हें… तो कभी इंसानों के दिलों में वस्वसे डालेगा, और लोग आपको कहेंगे, जनाब! आपको क्या हो गया है? आप तो अच्छे भले थे, आप किन बातों में पड़ गए जी? छोड़िये, इन चीज़ों को, ज़िंदगी इंज्‍वाएमेंट का नाम है, इंज्वॉय करें…।

मेरे अज़ीज़ों! अगर ईमान की शम्मा रौशन करनी है तो फिर नेकी दर नेकी करते रहना…। हर नेकी एक रौशन चिंगारी की मिस्‍ल है…। बस नेकियों को बचा बचा कर करना, कि ज़ालिम शैतान सामने बैठा आपकी नेकी बुझाने को तैयार बैठा हुआ है…।

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