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एक शख्स दूर दराज़ से सफर तय करके मदीना पहुँचा । उस शख्स को ख्वाहिश थी कि नबी ए करीम (सलल्ललाहो अलैही वसल्लम ) के रौज़ा ए अक़दस पर हाज़िरी दूँ ।
वह शख्स जब मदीना पहुँचा तो शाम हो चुकी थी ।ग़ुरबत का आलम था । जो रक़म साथ लाया था, वो भी ख़त्म हो चुकी थी । फिक्र हुई कि शाम को क्या खाऊंगा…?
दिन भर का भूखा था और बहुत मायूस हो गया ।
फिर अचानक ख्याल आया कि यहाँ तो वो मौजूद हैं, जो पूरी दुनिया का ख्याल रखते हैं ।
उठ कर प्यारे आक़ा के रौज़ा ए अकदस पर पहुँचा और अर्ज किया……..
या रसूलअल्लाह..!!
मैं सुबह से बहुत भूखा हूँ.
मुझे कुछ खाने को अता करें
मैं आपका मेहमान हूँ । ये कहकर वो शख्स वहीं लेट गया ।
नींद का ग़ल्बा जारी हुआ क्या देखता है कि ख्वाब में हज़रत अबूबक्र और हज़रत उमर रजियल्ललाहू अन्हु तशरीफ लायें हैं और उस शख्स से आपने फरमाया कि
ए फालाँ उठो..!!
रसूले करीम ने तुम्हारे लिए रोटी भेजी है । उस शख्स ने ख्वाब में ही वो रोटी हज़रत उमर से ले ली और खाने लगे
अभी आधी रोटी ही खाई थी कि आँख खुल गई । जब आँख खुली तो देखा कि वो शख्स वहीं लेटा था और रोटी का आधा हिस्सा हाथ में था ।
#सुभान____अल्लाह
ये शान है मेरे आक़ा (सलल्ललाहो अलैही वसल्लम ) की
[ सीरत उन नबी – 77/167 ]

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