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करायत यानि कुरान शरीफ पढ़ने का तरीका

करायत में कितनी आवाज़ होनी चाहिए

मस्ला– करायत में इतनी आवाज़ होनी चाहिए के अगर बहिर ना हो और सोर गुल ना हो तो खुद सुन सके अगर इतनी आवाज़ भो ना हुई तो नमाज़ ना होगी उसी तरह जिन मआमलात में बोलने को खुद है सब में उतनी आवाज़ जरुरी है मस्ला जानवर जबह करते वक्त बिस्मिल्लाहअल्लाह हुअक्बर कहने में तलाक देने में आयत सजदा पढ़ने पर सजदा तिलावत वाजिब इतनी आवाज़ जरुरी है के खुद सुन सके.

मस्ला- फज़र व मगरिब व ईशा की दो पहली रकअतो में और जुम्मा ईद व तरावीह और रमजान के वित्र में इमाम पर जेहर (इतनी आवाज़ से पढ़े के कम से कम पहली सफ के लोग सुन सके ) वाजिब है और मग़रिब की तीसरी रकअत में और ईशा की तीसरी चौथी रकअत में जोहर व असर की सब रकअत में आसिस्ता पढ़ना वाजिब है.

मस्ला- जेहर का मतलब ये है के इतनी आवाज़ से पढ़े के कम से कम पहली सफ के लोग सुन सके और आहिस्ता ये के खुद सुन सके.

मस्ला- उस तरह पढ़ना के करीब के एक दो आदमी सुन सके जेहर नहीं बलके आहिस्ता है.

मस्ला- जेहर नमाजो में अकेले को इख्तियार है चाहे जोर से पढ़े चाहे आहिस्ता और अफज़ल जेहर है.

मस्ला– अगर कज़ा नमाज़ पढ़ते है तो सब नमाज़ आहिस्ता पढ़ना वाजिब है.

मस्ला– आहिस्ता पढ़ रहा था के दूसरा सख्स सामिल हो गया तो जो बाकि है उसे जोर से पढ़े और जो पढ़ चूका है उस का कोई मतलब नहीं.

मस्ला- सूरत मिलाना भूल गया और रुकू में याद आया तो खड़ा हो जाए और सूरत मिलाये फिर रुकू करे और आखिर में सजदा सहु करे अगर दोबारह रुकू ना करेगा तो नमाज़ ना होगी.

कुरान शरीफ के अदब

मस्ला- कुरान शरीफ जोर से पढ़ना अफज़ल है जब के किसी नमाजी या बीमार या सोने वाले को तकलीफ ना पहुंचे.

मस्ला- दीवारों और मेहराबो पर कुरान मजीद की आयत लिखना अच्छा नहीं.

मस्ला– कुरान शरीफ पढ़ कर भूला जाना गुनाह है क़यामत के दिन अँधा कोरही होकर उठेगा.

मस्ला– कुरान शरीफ की तरफ पीठ ना की जाए ना पाओ फैलाया जाए ना पाओ उससे ऊँचा रखे और कुरान शरीफ निचे है और आप ऊपर बैठे है ये सब गुनाह है.

मस्ला- कुरान शरीफ पुराना हो गया के पढ़ने के काबिल नहीं रहा तो किसी पाक कपड़ा में लपेटकर किसी अच्छे जगह दफ़न कर दिया जाए और दफ़न करने में उसके के लिए लहद (कब्र) बनाई जाती है ताके उस पर मिट्टी ना पड़े.

मस्ला- पुराने कुरान शरीफ को जो पढ़ने के काबिल नहीं रहा उसे जलाया नहीं जाए बलके दफ़न किया जाए.

मस्ला- कुरान मजीद जिस संदूक में हो उसपर कपड़ा वगैरा नहीं रखा जाए.

मस्ला– किसी ने कुरान मजीद खैर व बरकत के लिए अपने घर में रख छोड़ा है और तिलावत नहीं करता तो गुनाह नहीं होता बलके उसे सवाब मिलता है.

जिससे हरूफ सही नहीं होता है वह क्या करे

जिससे हरूफ सही अदा नहीं होते उसपर वाजिब है के हरूफ सही करने में रात व दिन पूरी कोशिश करे और अगर सही पढ़ने वालो के पीछे पढ़ सकता हो तो जहाँ तक हो सके उन के पीछे पढ़े या वह आयते पढ़े जिन के हरूफ सही अदा कर सकता हो और ये दोनों बाते मुमकिन ना हो तो कोशिश के ज़माने में उसकी अपनी नमाज़ हो जाएगी और उसके पीछे उस जैसो को भी.

मस्ला- जिसने सुबहान रब्बील अज़ीम को अज़ीम- ज़ के बजाए ज पढ़ दिया तो नमाज़ हो जाएगी लिहाज़ा जिस से अज़ीम सही अदा ना हो वह सुबहान रब्बिल करीम पढ़े.

करायत मे गलती हो जाने का बयान

इसका मतलब ये है के नमाज़ में ऐसी गलती की जिससे मना बिगर जाए तो नमाज़ फासिद हो जाती है वर्ना नहीं.

मस्ला– एक हरूफ के जगह दूसरा हरूफ पढ़ा अगर उसकी वजह से है के उसकी जबान से वह हरूफ अदा नहीं होता तो मजबूर है उसपर कोशिश करना चाहिए और अगर लापरवाही से है जैसे आज कल के अक्सर हाफिज व अल्माए के अदा करने पर कादिर है मगर बे ख्याल में तब्दील हरूफ कर देते है तो अगर मना फासिद हुआ तो नमाज़ नहीं होगा इस किस्म की जितनी नमाज़े पढ़ी हो उन की कज़ा लाजिम है.

नमाज़ में सूरत छोड़ने का हुक्म

मस्ला– नमाज़ में एक सूरत छोड़ कर पढ़ना मकरूह है लेकिन अगर दरमियान से सूरत पहली से पढ़ी हो तो छोड़ सकते है मस्ला वात्तिन के बाद इन्न अन्जलना पढ़ने में हर्ज़ नहीं और इजाजा के बाद कुल होवल लाहो अहद पढ़ना नहीं चाहिए.

मस्ला- बेहतर ये है के फ़र्ज़ नमाजो में पहली रकअत की करायत दूसरी रकअत सकुच ज्यादा हो और फज़र में तो पहली रकअत में दो तहाई और दूसरी में एक तहाई हो.

मस्ला– जुम्मा व ईद की पहली रकअत में सबह इसम और दूसरी रकअत में हल अताक रसोलो पढ़ना सुन्नत है.

मस्ला- सुन्नतो और नाफिलो की दोनों रकअतो में बराबर की सूरते पढ़े.

मस्ला- नफिल की दोनों रकअतो में एक ही सूरत पढ़ना या एक रकअत में उसी सूरत को बार बार पढ़ना बला जाईज है.

नमाज़ के बाहर कुरान शरीफ पढ़ने का बयान

मस्ला- कुरान शरीफ अच्छी आवाज़ से पढ़ना चाहिए- लेकिन गाने की तरह नहीं पढ़ना चाहिए क्युकी इस तरह पढ़ना नाजाइज है.

मस्ला- कुरान शरीफ देखकर पढ़ना बिना देखे पढ़ने से बेहतर है मुस्तहब ये है के वजू करके किबला रुख अच्छे कपड़े पहनकर तिलावत करे और तिलावत के शुरू में अउजो बिल्लाहे पढ़ना वाजिब है और सुरह के शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना सुन्नत है वर्ना मुस्तहब है के अगर आयत पढ़ना चाहता है और उस आयत के शुरू में जमीर है जो अल्लाह ताअला की तरफ राज़ी है जैसे होवल लाहो लजी लाइलाह इल्लाहो तो इस सूरत में अउजो बिल्लाह के बाद बिस्मिल्लाह पढ़ना चाहिए- बिच में कोई दुनयावी काम करे तो फिर से बिस्मिल्लाहपढ़ ले और दिनी काम किया जैसे सलाम का जवाब दिया, या अज़ान का जवाब दिया या सुभानअल्लाह कहा या कलमा वगैरा पढ़ा तो अउजो बिल्लाहे पढ़ना इसके जिम्मा नहीं.

मस्ला- तिन दिन के अंदर में कुरान शरीफ ख़तम करना बेहतर नहीं.

मस्ला- जब कुरान शरीफ ख़तम हो जाए तो कुल होवल लाहो अहद पढ़ना बेहतर है.

मस्ला– लेट कर कुरान मजीद पढ़ने में हर्ज़ नहीं जबके पाओ सिमटे हो और मुंह खुला हो युही चलने और काम करने की हालत में भी तिलावत जाईज है जबके दिल ना बाते तो ठीक है वर्ना मकरूह है.

मस्ला- गुसल खाना और नजासत की जगह में कुरान मजीद पढ़ना नाजाइज है.

मस्ला- जब बुलंद आवाज़ से कुरान शारिफ पढ़ा जाए तो तमाम हाजेरिन पर सुनना फ़र्ज़ है जबके वह मजमा सुनने की अर्ज़ से हाज़िर हो- वर्ना एक का सुनना काफी है अगर चा और अपने काम में हो.

मस्ला- सब लोग मजमा में जोर से पढ़े ये हराम है अक्सर अर्स व फातिहा के मौका पर सब लोग जोर से पढ़ते है ये हराम है अगर चंद आदमी पढ़ने वाले हो तो हुक्म है के आहिस्ता पढ़े.

मस्ला- बजारों में और जहाँ लोग काम मे लगे हो जोर से पढ़ना नाजाइज है लोग अगर ना सुनेगे तो गुनाह पढ़ने वाले पर है.

मस्ला- कुरान शरीफ तिलावत कर रहा है तो बद्साहे इस्लाम या आलिमे दिन या पीर या उस्ताद या बाप आ जाए तो तिलावत करने वाला उसकी ताजिम को खड़ा हो सकता है.

मस्ला- जो सख्स कुरान मजीद गलत पढता हो तो सुनने वाले पर वाजिब है के बता दे.

कौन कौन सूरते तवाल मुफसिल है और कौन सी कसार मुफसिल है

फायदा- सुरह हज़रात से सुरह बरोज़ तक की सूरते तवाल मुफसिल कहलाती है और सुरह बरोज़ से सुरह लम यकून लाजिन तक औसात मुफसिल और लम यकून से आखिर तक कसार मुफसिल कही जाती है.

मस्ला- फज़र की सुन्नत पढ़ने में जमाअत जाने का डर हो तो सिर्फ वाजिब पर इक्त्सार करे सना व तउज को छोड़ दे और रुकू व सजदा में एक एक बार तस्बीह पढ़े.

मस्ला- वित्र में हुजुर अलेहे सलातो सलाम पहली रकअत में सबह इसमें रबूक अला पढ़े और दूसरी रकअत में कुल्या अह्युल कफेरिन और तीसरी रकअत में कुल होव्ल लाहो अहद पढ़े.

मस्ला कुरान शरीफ उल्टा पढ़ना मकरूह तहरिमी है मस्ला ये के पहली रकअत में कुल्या अह्युल कफेरून पढ़े और दूसरी रकअत में अलम तर कैफ पढ़े ये नाजाइज है लेकिन अगर भूल कर पढ़ दी तो कुछ हर्ज़ नहीं.

मस्ला– बच्चो को सुरह याद कराने के लिए पारह अम पढ़ाने में कोई हर्ज़ नहीं.

मस्ला- अगर भूल कर दूसरी रकअत में पहली वाली सुरह शुरू कर दी फिर याद आया तो अभी एक ही लफ्ज़ पढ़ा हो उसी को पूरा करे दूसरी में पढ़ने की इज़ाज़त नहीं.

मस्ला- पहली रकअत में कुल्या अह्युल कफेरिन पढ़ी और दूसरी में भूले से अलम त-ल कै-फ शुरू कर दी तो उसी को पढ़े.

मस्ला- अगर सुरह फातिहा पढ़ने के बाद सूरत मिलाना भूल जाए और रुकू में याद आए तो क्या करे?

अगर सूरत मिलाना भूल जाए और रुकू में याद आए तो खड़ा हो जाए और सूरत मिलाये फिर रुकू करे और आखिर में सजदा सहु करे.

फ़र्ज़ के पहली रकअत में सूरत मिलाना भूल जाए तो क्या करे?

फ़र्ज़ के पहली रकअतो में सूरत मिलाना भूल जाए तो और रुकू के बाद याद आए तो पिछली दो रकअतो में पढ़े और आखिर में सजदा सहु करे और मग़रिब के पहली दो रकअतो में भूल जाए तो तीसरी में पढ़े और एक रकअत की सूरत जाती रही आखिर में सजदा सहु करे.

अगर फज्र के पहली दो रकअतो में से किसी एक में सूरत मिलाना भूल जाए और रुकू के बाद याद आए तो क्या करे?

तीसरी या चौथी में सुरह फातिहा के साथ सूरत मिलाये और आखिर में सजदा सहु करले.

अगर सुन्नत या नफिल में सूरत मिलाना भूल जाए और रुकू के बाद सजदा वगैरा में याद आए तो क्या करे?

आखिर में सजदा सहु करे.

पहली रकअत में जो सूरत पढ़ी फिर उसी सूरत को दूसरी रकआत भूल कर शुरू करदी तो क्या करे?

फिर उसी सूरत को शुरू करदी तो उसी को पढ़े और हमेसा ऐसा करना मकरूह तन्जिही है- हाँ अगर दूसरी सूरत याद ना हो तो हर्ज़ नहीं.



आपको कुरान शरीफ पढ़ने कातरीका मालूम चल गया होगा और कुरान शरीफ कैसे पढ़ा जाता है और उसका अदब क्या है वगैरा के बारे में मालूम हो गया और कोई समस्या हो कमेंट करके जरुर बताना.

Asalam-o-alaikum , Hi i am noor saba from Jharkhand ranchi i am very passionate about blogging and websites. i loves creating and writing blogs hope you will like my post khuda hafeez Dua me yaad rakhna.
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