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रोज़ा किसे कहते है

सुबह सादिक से गरुब आफताब तक यानि सुबह उजाला होने से पहले से लेकर सूरज ढलने के बाद तक नियत के साथ खाने,पिने और जमाई से रोकने का नाम रोज़ा है

रमजान शरीफ के रोज़े किन लोगो पर फ़र्ज़ है

रमजान शरीफ के रोज़ा हर मुसलमान आकिल बालिग मर्द  औरत पर फ़र्ज़ है इन की फजीलत का इंकार करने वाला काफ़िर और बाला जरुरत छोड़ने वाला सख्त गुनहगार होगा- और बच्चा की उम्र जब दस साल की हो जाये और उसमे रोज़ा रखने की ताकत हो तो उससे रोज़ा रखवाओ और न रखे तो मार कर रखवाओ.

रोज़ा की फ़ज़ीलत क्या है

रोज़ा भी नमाज़ की तरह ही फ़र्ज़ है इनकी फ़ज़ीलत का इंकार करने वाला और बिना जरुरत रोज़ा छोड़ने वाला सख्त गुनहगार होंगे जो बच्चे रोज़ा रख सकते है उने रोज़ा रखवाए और न रखे तो मार कर रखवाए पूरा एक महिना रमजान का रोज़ा फ़र्ज़ है.

रोज़ा की तारीफ़ और रोज़ा की उम्र

सरियात में रोज़ा के माना है अल्लाह की इबादत की नियत से सुबह सादिक से लेकर सूरज डूबने तक खाने पिने और जमाह से अपने को रोके रखना रोज़ा है रोज़ा के लिए औरत का हैज़ व् नफास से खाली होना सर्त है यानि हैज़ व् नफास के हालत में रोज़ा सही नहीं- हैज़ व् नफास वाली पर फ़र्ज़ है के पाक होने के बाद उन रोज़ा जो छोड़ा है उन रोज़ा को कज़ा रखे- नाबालिग पर रोज़ा फ़र्ज़ नहीं- और मजनून पर भी रोज़ा फ़र्ज़ नहीं जब पूरा महिना रमजान का जुनून की हालत में गुज़र जाए- और अगर किसी एक दिन में भी ऐसी वक्तमें होस आया के व् वक्त रोज़ा की नियत का वकत है तो पुरे महीने की कज़ा लाजिम है

मसला शुरू रमजान से पागल हो गया 29 तारीख को सुबह सादिक से पहले यानि रोज़ा रखने से पहले होश आ जाये तो पुरे रमजान की कज़ा लाजिम होगा.

रोज़ा की नियत का वक्त

मसला  रमजान के अदा रोज़े और नफिल व् सुन्नत व् मोस्ताहब व् मकरूह रोज़े इन सब रोजो की नियत का वकत सूरज डूबने तक है इस वकत जब नियत करेंगे  तो रोज़ा हो जायेगा लेकिन रात ही में कर लेना बेहतर है इन 6 रोज़ा के आलावा जितनी रोज़े है जैसे रमजान की कज़ा का रोज़ा ,नफिल की रोज़ा का कज़ा,कुफारा का रोज़ा और जनायत का रोज़ा इन सब रोज़ा की नियत के लिए वकत सूरज डूबने के बाद से सुबह सादिक शुरू होने तक है उसके बाद नहीं और इन में से जो रोज़ा रखा जाये खास इसकी नियत भी जरुरी है जैसे यु नियत करे के कल 28 तारीख रमजान की कज़ा का रोज़ा रखोगे या एक दिन के रोज़ा की मनत मानी थी उसका रोज़ा है और उसी तरह जो रोज़ा रखना हो उसको नियत में मोकरर करे.

नियत का माना

मस्ला जिस तरह और इबादतों में बताया गया के नियत दिल के इरादा का नाम है जबान से कहना कुछ जरुरी नहीं उसी तरह यहाँ रोज़ा में भी वाही बात है मतलब जबान से कह लेना अच्छा नहीं- अगर रात में नियत करे तो यु कहे के नियत की मैंने अल्लाह  ताआला के लिए उस रमजान का  फ़र्ज़ रोज़ा कल रखूँगा और  अगर दिन में नियत करे तो यु कहे नियत की मैंने अल्लाह ताआला के लिए आज रमजान का फ़र्ज़ रोज़ा रखूँगा मसला- दिन  नियत करे तो जरुरी है के ये नियत करे के सुबह सादिक  से रोजादार हु और अगर ये नियत है के अब से रोजादार हूँ सुबह से नहीं तो रोज़ा न होगा.

रोज़ा रखने की मन्नत

मसला- रोज़ा रखने की मन्नत मानी तो काम पूरा होने पर उसका रखना वाजिब हो गया

मसला- नफिल रोज़ा रखकर तोड़ दिया तो अब उसकी कज़ा वाजिब है.

सक के दिन का रोज़ा

मसला– 30 सबान के बारे में अगर ये सक हो के ये पहली रमजान है या तीसवी सबान तो इस दिन खाली नफिल की नियत से रोज़ा रख सकते है लेकिन उस नियत से नहीं के अगर ये दिन रमजान साबित होआ तो रमजान का रोज़ा वर्ना नफिल का ऐसी नियत से रोज़ा मकरूह तहरिमी है हा अगर ऐसी तीसवी तारीख उसके आदत के दिन में पड़े तो फिर रोज़ा रखना ही अफज़ल है जैसे कोई सख्स हमेसा जुमरात का रोज़ा रखा करता है और उसी तीसवी सबान को जुमरात पड़े तो व् अपना नफिल रोज़ा रखे.
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