एक नौजवान ब्याहता जोड़े के घर के सामने नए पड़ोसी आए… इस जोड़े की बीवी की आदत थी कि वो हर एक पर तन्क़ीदी नज़र रखती थी…।
उनके डाइनिंग हाल से सामने वालों का घर साफ़ नज़र आता था…।
एक दिन जब वो दोनों नाश्ते की मेज़ पर बैठे नाश्ता कर रहे थे तो बीवी ने देखा कि सामने वालों ने कपड़े धो कर बाहर बालकोनी में फैलाए हुए हैं…। ये लोग कितने ख़राब और गंदे कपड़े धोते हैं, बीवी अपने शौहर से बोली ज़रा भी साफ़ कपड़े नहीं धुले…। उनकी ख़्वातीन को कपड़े धोने आते ही नहीं हैं, उनको चाहिए कि अपना साबुन तबदील कर लें, या कम से कम किसी से सीख ही लें कि कपड़े किस तरह धोए जाते हैं…। शौहर ने नज़रें उठा कर बाहर की तरफ़ देखा लेकिन ख़ामोश रहा…।
हर बार जब भी उनके पड़ोसी अपने कपड़े धो कर फैलाते, इस ख़ातून के उनके कपड़ों और धुलाई के बारे में यही तास्सुरात होते…। वो हमेशा ही अपने शौहर के सामने अपने ख़्यालात का इज़हार करती कि आज फिर उन लोगों ने कपड़े अच्छे नहीं धोए, दिल चाहता है ख़ुद जा कर उनको बता दूं कि किस तरह ये अपने कपड़ों की धुलाई बेहतर कर सकते हैं वग़ैरा वग़ैरा…।
अलग़रज़ वो घर और उनके कपड़ों की धुलाई हमेशा ही इस ख़ातून की तन्क़ीद का निशाना बनते रहते…। तक़रीबन एक महीना बाद वो औरत अपने पड़ोसियों के साफ़ सुथरे धुले कपड़े देख कर हैरान रह गई और अपने शौहर से बोली: देखा! “बिलआख़िर उन्होंने सीख ही लिया कि कपड़े कैसे धोए जाते हैं…।” शुक्र है कि आज उनके कपड़े साफ़ हैं लेकिन मुझे हैरत है कि आख़िर ये अक़ल उनको किस ने दी…? “शायद उन्होंने अपनी काम वाली तबदील की है या फिर अपना साबुन बदल दिया है और अपने शौहर के जवाब का इंतिज़ार करने के लिए चुप हो गई…।”
शौहर ने अपनी बीवी की तरफ़ ग़ौर से देखा और बोला: आज सुबह में जल्दी उठ गया था और मैंने अपने डाइनिंग हाल की वो खिड़की साफ़ की है जहां से तुम सामने वालों को देखती थीं…।
बिलकुल ऐसा ही हमारी रोज़मर्रा ज़िंदगी में होता है… हमारी अपनी खिड़की साफ़ नहीं होती और हम दूसरों को मौरूद-ए-इल्ज़ाम ठहराते हैं…। असल मसला ख़ुद हमारे अन्दर होता है लेकिन हम ना उसको मानते हैं और ना ही अपने मौक़िफ़ से पीछे हटते हैं…।
किसी को चेक करने का ये इंतिहाई बेहतरीन तरीक़ा है कि सबसे पहले आप अपनी खिड़की को देखें, क्या वो साफ़ है…? क्योंकि जब हम किसी को देखते हैं और अपनी राय का इज़हार करते हैं तो इस बात का इन्हिसार उस खिड़की या ज़रिये की शफ़्फ़ाफ़ियत पर होता है जिसमें से हम किसी को देख रहे होते हैं…। किसी पर नुक्ता चीनी और तन्क़ीद करने से पहले अपना जायज़ा अच्छी तरह ले लेना चाहिये…। अपने ख़्यालात और एहसासात को साफ़ और शफ़्फ़ाफ़ रखें…। जब अच्छी चीज़ को देखा जा सकता है तो बुरी चीज़ का क्यों मुशाहदा किया जाये…।
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