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सिज्दा तिलावत किसे कहते है

कुरान मजीद में 14 मकामात ऐसे है के जिन के पढ़ने या सुनने से सज्दा वाजिब होता है उसे सिज्दा तिलावत कहते है

सिज्दा तिलावत का तरीका क्या है

सिज्दा तिलावत का मस्नुन तरीका ये है के खड़ा होकर अल्लाह हुअक्बर कहता हुआ सिज्दा में जाए और कम से कम तिन बार सुबहान रबिल अला कहे फिर अल्लाह हुअक्बर कहता हुआ जाए- ना उसमे अल्लाह हुअक्बर कहता हुआ हाथ उठाना है और ना उसमे तस्हिद पढना है और ना सलाम फेरना है

सिज्दा तिलावत का मस्नुन तरीका क्या है

मस्ला- सिज्दा तिलावत में पहले पीछे दोनों बार अल्लाह हुअक्बर कहना सुन्नत है और पहले खड़े होकर फिर सजदा में जाना और सज्दा के बाद खड़ा हो जाना ये दोनों कायम मुस्तहब है

मस्ला– अगर सिज्दा तिलावत के पहले या बाद में खड़ा ना हुआ या अल्लाह हुअक्बर ना कहा या सुबहान रबिल आला ना पढ़ा तो भी सिज्दा अदा हो जाएगा- मगर तकबीर नही छोड़ना चाहिए क्युकी सफ के खिलाफ है.

मस्ला- सिज्दा तिलावत के लिए अल्लाह हुअक्बर कहते वक्त ना हाथ उठाना है ना तस्हिद पढ़ना है ना सलाम फेरना है.

मस्ला- कुल कुरान शरीफ में 14 आयते सिज्दा तिलावत की है- इनमे से जो आयत भी पढ़ी जाएगी – पढ़ने वाले और सुनने वाले दोनों पर सिज्दा वाजिब हो जाएगा चाहे सुनने वाले ने सुनने का इरादा किया हो या ना किया हो.

सिज्दा तिलावत के सर्त किया है

मस्ला- सिज्दा तिलावत के लिए तकबीर तहरिमा के सिवा तमाम वह सर्त है जो नमाज़ के लिए है जैसे तहारत, इस्तकबाल किबला, नियत, वक्त, सत्र औरत – लिहाज़ा अगर पानी से वजू नहीं कर सकते तो तय्य्मुम करके सिज्दा जाईज नहीं.

मस्ला- अगर आयत सिज्दा नमाज़ में पढ़े तो सिज्दा तिलावत फ़ौरन करना नमाज़ ही में वाजिब है अगर देर करेंगे तो गुनहगार होंगे- देर करने का मतलब ये है के तिन आयत से ज्यादा पढ़ लेना है लेकिन अगर सुरह के आखिर में सिजदा वाजिब है तो सूरत पूरी करके सिज्दा करेंगे जब भी हर्ज़ नहीं.

मस्ला- सिजदा की आयत नमाज़ में पढ़ी और सिजदा करना भूल गया तो जब तक हुरमते नमाज़ में है (हुरमते नमाज़ में होने का मतलब ये है के कोई काम ऐसा ना किया हो जो नमाज़ में मना है जैसे वजू ना तोड़ा हो, कुछ ना खाया हो या ना पानी पिया हो या कुछ बात नहीं किया हो तो सलाम फेरने के अभी हुरमते नमाज़ में है ) सिजदा करे ( अगर चा सलाम फेर चूका हो ) और सिजदा सहु भी करे.

मस्ला- नमाज़ में आयत सिजदा पढ़ी तो उसका सिजदा नमाज़ में ही वाजिब है नमाज़ के बाहर नहीं हो सकता अगर कस्दन ना किया था तो गुनहगार हुआ और तौबा लाजिम है जब के आयत सिजदा के बाद फ़ौरन रुकू और सिजदा नहीं किया हो.

मस्ला- सिजदा तिलावत की नियत में ये सर्त नहीं के फलां आयत का सिज्दा है बलके सिजदा तिलावत की नियत काफी है

मस्ला– जो चीज़े नमाज़ को फासिद करती है उन से सिज्दा तिलावत भी फासिद हो जाएगा.

मस्ला- आयत सिजदा लिखने या उसकी तरफ देखने से सिजदा वाजिब नहीं होता.

मस्ला- सिजदा वाजिब होने के लिए पूरी आयत पढ़ना जरुरी नहीं बलके वह लफ्ज़ जिसमे सिजदा का मावा पाया जाता हो और उसके साथ पहले या बाद का कोई लफ्ज़ मिलाकर पढ़ना काफी है.

मस्ला- आयत सिजदा की हिज्जे करने या हिज्जे सुनने से सिजदा वाजिब ना होगा.

मस्ला- आयत सिजदा का तर्जुम्मा पढ़ा तो पढ़ने वाले और सुनने वाले पर सिजदा वाजिब हो गया चाहे सुनने वाले ने ये समझा हो या ना समझा हो के ये सिजदा का तर्जुमा था- अलबता ये जरुरी है के उसे ना मालूम हो तो बता दिया गया हो के ये आयत सिजदा का तर्जुमा था-और अगर आयत पढ़ी गयी हो तो उसकी जरुरत नहीं के सुनने वाले को आयत सिजदा होना बताया गया हो.

मस्ला- हैज़ व नफास वाली औरत ने आयत सिजदा पढ़ी तो खुद उस पर सिजदा वाजिब ना होगा- अलबता और सुनने वालो पर सिजदा तिलावत वाजिब हो जाएगा.

मस्ला- हैज़ व नफास वाली औरत पर आयत सिजदा सुनने से भी सिजदा वाजिब नहीं होता जैसा के पढ़ने से नहीं होता.

मस्ला- बे वजू आयत सिजदा पढ़ी या सुनी तो सिजदा वाजिब है.

मस्ला- नाबालिग ने आयत सिजदा पढ़ी तो सुनने वाले पर सिजदा वाजिब है नाबालिग पर नहीं.

मस्ला- पूरी सूरत पढ़ना और सिजदा की आयत छोड़ देना मकरूह तहरिमी है.

मस्ला- एक मस्जिद में सिजदा की एक आयत को बार बार पढ़ना या सुनना तो एक ही सिजदा वाजिब होगा अगर च चंद आदमियों से सुना हो युही अगर एक आयत पढ़ी और वही आयत वह दुसरे से सुनी तो भी एक सिजदा  वाजिब होगा.

मस्ला- इमाम ने आयत सिजदा पढ़ी और सिजदा ना  किया तो मुक्तदी भी उसके पैरवी में सिजदा ना करेगा.

मजलिस बदलने की सूरते

मस्ला– एक दो लुकमा खाने से एक दो घुट पानी पिने से, खड़े हो जाने से, एक दो कदम चलने से, सलाम का जवाब देने से, एक दो बाते करने से, घर के एक कोने से दूसरी कोने की तरफ चलने से मजलिस नहीं बदलेगी हाँ अगर मकान बड़ा है जैसे साही महल तो ऐसी मकान के एक कोने से दूसरी कोने में जाने से मजलिस बदल जाएगी- और कस्ती में है और कस्ती चल रही है तो मजलिस माहि बदलेगी- रेलगाड़ी का भी यही हुक्म है- जानवर पर सवार है और जानवर चल रही है तो मजलिस बदल रही है हाँ अगर सवारी पर नमाज़ पढ़ रहा है तो मजलिस नहीं बदलेगी- तिन लुकमा खाने, तिन घुट पिने, तिन लफ्ज़ बोलने, तिन कदम मैदान में चलने से, निकाह करने से, लेट कर सो जाने से मजलिस बदल जाएगी.

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