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सेहरी की फजीलत

रसूल अल्लाह सल्लाह अलेहे व्सलम ने फ़रमाया सेहरी खाव क्युकी सेहरी खाने में बरकत है. अल्लाह और उसके फरिस्ते सेहरी खाने वालो पर दुरुद भेजते है.सेहरी खाना कुल के कुल बरकत है सेहरी खाना नहीं छोड़ना चाहिए चाहे एक घुट ही सही पानी पि ले क्युकी सेहरी खाने वालो पर अल्लाह और उसके फरिस्ते दरूद भेजते है.हुजुर अलेहे सलातो व्सलम फरमाते है के अल्लाह ताअला ने फ़रमाया के मेरे बन्दों में मुझे ज्यादा प्यारा वह है जो इफ्तार में जल्दी करता है और फ़रमाया इफ्तार में जल्दी करने और सेहरी में देर करने वालो को अल्लाह ताअला पसंद करते है.
मस्ला- सेहरी खाना और उसमे देर करना सुन्नत है मगर इतनी देर करना मकरूह है के सुबह सादिक शुरू हो जाने का सक हो जाये.
मस्ला– इफ्तार में जल्दी करना सुन्नत है मगर इफ्तार उस वक्त करे जब सूरज डूब जाने का इत्मिनान यानि सुकून हो जाये. जब तक सूरज डूबने का इत्मिनान न हो इफ्तार  न करे चाहे मोजिन ने अज़ान कह दी हो और बादल के दिन इफ्तार में जल्दी नहीं करना चाहिए.

रोज़ा सेहरी की दुआ

नवय्तो अन असोम्मो गद्न्न मिन सहरे रमजाने हाज़ा.

रोज़ा में  किस चीज़ से इफ्तार किया जाय

मसला- रसूल अल्लाह सल्लाह अलेहे व्सलम ने फ़रमाया जब कोई रोज़ा इफ्तार खोले तो खजूर या छोहारा से इफ्तार खोले क्युकी इस में बरकत है और अगर खजूर या छुहारा नहीं मिले तो पानी से इफ्तार करे क्युकी पानी पाक करने वाला है .

रोज़ा इफ्तार की दुआ

हिंदी –अल्लाह्हुम इन्नी ल क सुम्तो व् बे क आमंतो व् अलैक तव्कल्तो व् अला रिज्केक अफ्तारतो.

माना– यानि ये अल्लाह तेरे ही लिए रोज़ा रखा मैंने और तेरे ही दी हुयी रोज़ी से इफ्तार किया मैंने.

कब नफिल रोज़ा तोड़ सकते है

मसला- मेहमान की खातिर से नफिल रोज़ा तोड़ने की इज़ाज़त है जब आपको भरोसा हो जाये की इसकी कज़ा रख सकते है और ये तोड़ने की इज़ाज़त जहोहे कबला यानि असर से पहले तक है बाद में नहीं मगर माँ बाप की नाराजगी के सबब से असर से पहले तक तोड़ सकता है असर के बाद नहीं तोड़ सकते.

मस्ला- किसी भाई ने आपको दावत दी तो जहोहे काबरा यानि असर से पहले नफिल रोज़ा तोड़ने की इज़ाज़त है लेकिन बाद में इस रोज़ा की कज़ा लाजिम है.

मस्ला- औरत बगैर अपने सोहर की इज़ाज़त से नफिल रोज़ा या मन्नत वाली रोज़ा और दुसरे किस्म की रोज़ा नहीं रखे और अगर अपने सौहर की इज़ाज़त के बगैर रोज़ा रख ली तो सौहर तोड़वा सकता है मगर रोज़ा तोड़ेगे तो कज़ा रखना वाजिब होगी और उसकी कज़ा में सौहर से इज़ाज़त लेनी होगी और सौहर का हर्ज़ न हो तो कज़ा में इसकी इज़ाज़त की जरुरत नहीं बलके सौहर मना भी करे तो कज़ा रख सकते है रमजान के लिए और रमजान की कज़ा के लिए सौहर की इज़ाज़त की जरुरत नहीं बलके सौहर रोके तो भी रोज़ा की कज़ा रख सकते है.

मस्ला- अगर कोई आदमी किसी वजह से रोज़ा नहीं रखा तो बाद में जब बन पड़े रोज़ा की कज़ा रखना फ़र्ज़ है.

जिन लोगो को रोज़ा न रखने की इज़ाज़त है क्या वह किसी चीज़ को खुलेआम खा पि सकते है

नहीं उन्हें भी खुलेआम किसी चीज़ को खाने पिने की इज़ाज़त नहीं है .

जो सख्स रमजान के दिनों में खुलेआम खाए पिए तो इसके बारे में क्या हुक्म है

ऐसे सख्स के बारे इस्लाम कहता है की उसे कतल कर दे और जहाँ बद्साहे इस्लाम न हो सब मुसलमान इसको बायकाट करे यानि अपने कौम से छाट दे.

किन किन हालतों में रोज़ा नहीं रखने की इज़ाज़त है

मस्ला-सफ़र से मुराद सरई सफ़र है यानि उतनी दूर जाने के इरादा से अपने घर से निकला के यहाँ से वहा तक तिन दिन की राह हुआ क्यों नहीं ये सफ़र किसी नाजाइज काम के लिए हो.

मस्ला दिन में सफ़र किया तो उस दिन का रोज़ा इफ्तार करने के लिए आज का सफ़र उज़र नहीं बलके अगर तोड़े तो कुफारा लाजिम न आएगा मगर गुनहगार होगा. और अगर सफ़र करने से पहले तोड़ दिया फिर सफ़र किया तो कुफारा भी लाजिम हुआ और अगर दिन में सफ़र किया और मकान में कोई चीज़ भूल गया था उसे वापस लेने आया और मकान पर आकर रोज़ा तोड़ दिया तो कुफारा वाजिब ह

मस्ला- खुद उस मोसाफिर को और उसके साथ वाले मोसाफिर को रोज़ा रखने में दिक्कत न पहुंचे तो रोज़ा रखना सफ़र में बेहतर है वर्ना नहीं रखना भी बेहतर है.

मस्ला- हमल वाली और दूध पिलाने वाली को अगर अपनी जान या बच्चा का सही डर हो तो इज़ाज़त है के उस वकत रोज़ा न रखे मतलब दूध पिलाने वाली बच्चा की माँ हो या दादी हो अगर रमजान में दूध पिलाने की नौकरी की हो तो उस वकत रोज़ा न रखे.

मस्ला- मरीज़ को बीमारी बढ़ जाने या देर में अच्छा होने का या तन्दुरुस्त को बेमार हो जाने का गुमान ग़ालिब हो या खादिम को बहुत कमजोर हो जाने का गुमान ग़ालिब हो तो इन सब को इज़ाज़त है के उस दिन रोज़ा न रखे.

मस्ला- भूक और प्यास ऐसा हो के हलाक हो जाने का सही डर हो या अकल ख़राब हो जाने का डर हो तो रोज़ा नहीं रखे.
मसला- सांप ने काटा और जान का डर हो तो रोज़ा तोड़ दे.
मस्ला- सेख फानी(यानि वह बुढा जिसकी उम्र ऐसी हो गयी के अब रोज़ बरोज़ कमजोर ही होता जायेगा)जब रोज़ा रखने से आजिज़ हो यानि न अब रख सकता है न कभी इसमें इतना ताकत आने की उमीद है के रोज़ा रख सकेगा तो उसे रोज़ा न रखने की इज़ाज़त है और हर रोज़े के बदले में फुदिया यानि दोनों वक्त एक मिस्किन को भर पेट खाना खिलाना इस पर वाजिब है या हर रोज़े के बदले में सदका फ़ित्र के बराबर मिस्किन या फ़क़ीर को दे दे.
मस्ला- अगर ऐसा बुढा गर्मियों में गर्मियों की वजह से रोज़ा नहीं रख सकता मगर जाड़ो में रख सकता है तो अब इफ्तार करे और इनके बदले के जाड़ो में रखना फ़र्ज़ है.
मस्ला– अगर फुदिया देने के बाद उतनी ताकत आ गयी के रोज़ा रख सखे तो इन रोजो की कज़ा रखना वाजिब है फुदिया सदका नफिल हो गया.
मसला– किसी के बदले कोई दूसरा रोज़ा नहीं रख सकता है और न नमाज़ पढ़ सकता है मगर अपने रोज़े नमाज़ वगैरा का सवाब दूसरा को पहुंचा सकता है.
मसला– नफ्ली रोज़ा कस्दन शुरू करने से लाजिम हो जाता है अगर तोड़ेगा तो कज़ा वाजिब है या किसी वजह से टूट जाता है जैसे हैज़ आ गया तो भी कज़ा वाजिब है.

Asalam-o-alaikum , Hi i am noor saba from Jharkhand ranchi i am very passionate about blogging and websites. i loves creating and writing blogs hope you will like my post khuda hafeez Dua me yaad rakhna.
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