शब-ए-बारात का रोजा कब है?
हिजरी कैलेंडर के अनुसार माह शबन की 14वी तारीख को शब-ए-बारात होता है, 15वी तारीख को कुछ लोग रोजा रखता है
वर्ष 2022 में 18 मार्च से 19 मार्च अक्टूबर को शबे बारात की रात है|
शबे बरात 2022 के लिए रोजा 18 मार्च से 19 अक्टूबर को होगा। दिन शुक्रवार के फज्र नमाज़ अजान से पहले रोजे की नियत करें|
आइए आपको विस्तार से जानते हैं कि शबे बरात का त्यौहार भारत में किस दिन मनाया जाएगा.
शब ए बारात की रात में क्या पढ़े?
शब ए बारात को गुनाहों की माफी की रात कहा जाता है। एक रात की इबादत को एक हजार रात की इबादत के बराबर माना जाता है।
- ज़ियारत
- क़ुरान पाक की तिलावत
- नफल व तहजुद की नमाज
- रोज़ा रखना
- कब्रिस्तान में फातिहा पढ़ना
- मगफिरत की दुआ
- सलातुल तस्बीह की नमाज
- कजा़ ए उमरी की नमाज़
शब ए बारात की रात में तोबा सबसे ज्यादा कबूल होती है। जो सक्स शब ए बारात की रात अपने हाथों को उठाकर दुआ करते है अल्लाह उसके दुआएं कबूल कर देते है, अल्लाह ताला हमारे लिए रहमतों व नेकियों के दरवाजे खुल देते हैं। हम लोगों पर बरकत बरसता है|
शब ए बारात की रात में नफिल या कजा़ ए उमरी की नमाज़ पढ़ें
नफिल नमाज फर्ज नहीं है। यह एक सुन्नत है। अगर आप पढ़ लेंगे तो आपको इसका सवाब मिलेगा। अल्लाह ताला ने जो हमारे लिए पांच वक्त का नमाज़ फ़र्ज़ मुकर्रर किये हैं, वह फर्ज है।
अगर फर्ज नमाज़ को समय पर ना पढ़ें तो, वह कजा़ हो जाती है। कजा़ नमाज हमें जरूर पढ़ लेनी चाहिए। पांच वक्त के सभी फर्ज एवं वितर नमाज़ की कजा़ जरूर पढ़ना चाहिए।
मान लें कि आप जब से बालिग हुए हैं। पिछले 10 सालों से आपके बहुत सारे नमाज कजा़ हुआ है। उसे पूरा करने के लिए कजा़ ए उमरी की नमाज पढ़ी जाती है।
याद रखें नफिल नमाज अगर आप नहीं पढ़ते हैं तो कोई गुनाह नहीं है। अगर आप पढ़ते हैं तो आपको सवाब मिलेगा। लेकिन आप फर्ज नमाज नहीं पढ़ते हैं तो आपको यकीनन गुनाह होगा।
इसीलिए बड़े मुस्लिम ईमाम कहते हैं कि शब ए बारात की रात में नफिल से ज्यादा कजा़ ए उमरी की नमाज़ को तर्जी देना चाहिए।
शबे बरात की रात सलातुल तस्बीह की नमाज पढ़ें
सलातुल तस्बीह की नमाज़ हदीस में कहा गया है कि आपको हर दिन पढ़ना चाहिए या कम से कम साल में एक बार जरूर ही पढ़ लेना चाहिए।
सलातुल तस्बीह की नमाज पढ़ने से गुनाह ए कबीरा व गुनाह शगीरा जैसे गुनाहों की माफी मिलती है। हम मुसलमानों को शबे रात की रात में सलातुल तस्बीह की नमाज़ जरूर पढ़नी चाहिए।
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