सूरए अअराफ़ मक्का में उतरी, इसमें दो सौ छ आ़यतें और चौबीस रूकू हैं.
सूरए अअराफ़ – पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
अलिफ़-लाम-मीम-सॉद, {1} ऐ मेहबूब! एक किताब तुम्हारी तरफ़ उतारी गई तो तुम्हारा जी उससे न रूके (2)
इसलिये कि तुम उससे डर सुनाओ और मुसलमानों को नसीहत {2} ऐ लोगो उसपर चलो जो तुम्हारी तरफ़ तुम्हारे रब के पास से उतरा(3)
और उसे छोड़कर और हाकिमों के पीछे न जाओ बहुत ही कम समझते हो {3} और कितनी ही बस्तियां हमने हलाक कीं (4)
तो उनपर हमारा अज़ाब रात में आया या जब वो दोपहर को सोते थे (5){4}
तो उनके मुंह से कुछ न निकला जब हमारा अज़ाब उनपर आया मगर यही बोले कि हम ज़ालिम थे (6){5}
तो बेशक ज़रूर हमें पूछना है जिनके पास रसूल गए (7)
और बेशक हमें पूछना है रसूलों से (8){6}
तो ज़रूर हम उनको बता देंगे(9)
अपने इल्म से और हम कुछ ग़ायब न थे {7} और उस दिन तौल ज़रूर होनी है(10)
तो जिनके पल्ले भारी हुए(11)
वही मुराद को पहुंचे {8} और जिनके पल्ले हलके हुए (12)
तो वही हैं जिन्होंने अपनी जान घाटे में डाली उन ज़ियादतियों का बदला जो हमारी आयतों पर करते थे (13) {9} और बेशक हमने तुम्हें ज़मीन में जमाव बनाए (14)
बहुत ही कम शुक्र करते हो (15) {10}
तफ़सीर सूरए-अअराफ़
(1) यह सूरत मक्कए मुकर्रमा में उतरी. एक रिवायत में है कि यह सूरत मक्की है, सिवाय पाँच आयतों के, जिनमें से पहली “व असअलुहुम अनिल क़रय़तिल्लती” है. इस सूरत में दो सौ छ आयतें, चौबीस रूकू, तीन हज़ार तीन सौ पच्चीस कलिमे और चौदह हज़ार दस हुरूफ़ हैं.
(2) इस ख़याल से कि शायद लोग न मानें और इससे अलग रहें और इसे झुटलाने पर तुले हों.
(3) यानी क़ुरआन शरीफ़, जिसमें हिदायत व नूर का बयान है. ज़ुजाज ने कहा कि अनुकरण करो क़ुरआन का और उस चीज़ का जो नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम लाए, क्योंकि यह सब अल्लाह का उतारा हुआ है, जैसा कि क़ुरआन शरीफ़ में फ़रमाया “मा आताकुमुर्रसूलो फ़ख़ज़ूहो. “ यानी जो कुछ रसूल तुम्हारे पास लाएं उसे अपना लो और जिससे मना फ़रमाएं उससे बाज़ रहो.
(4) अब अल्लाह के हुक्म का अनुकरण छोड़ने और उससे आँख फेरने के नतीजे पिछली क़ौमों के हालात में दिखाए जाते हैं.
(5) मानी ये हैं कि हमारा अज़ाब ऐसे वक़्त आया जबकि उन्हें ख़याल भी न था. या तो रात का वक़्त था, और वो आराम की नींद सोते थे, या दिन में क़ैलूले का वक़्त था, और वो राहत में मसरूफ़ थे. न अज़ाब उतरने की कोई निशानी थी, न क़रीना, कि पहले से अगाह होते. अचानक आ गया. इससे काफ़िरों को चेतावनी दी जाती है कि वो अम्न और राहत के साधनों पर घमण्ड न करें. अल्लाह का अज़ाब जब आता है तो अचानक आता है.
(6) अज़ाब आने पर उन्होंने अपने जुर्म का ऐतिराफ़ किया और उस वक़्त का ऐतिराफ़ भी कोई फ़ायदा नहीं देता.
(7) कि उन्होंने रसूलों की दअवत का क्या जवाब दिया और उनके हुक्म की क्या तामील अर्थात अनुकरण किया.
(8) कि उन्होंने अपनी उम्मतों को हमारे संदेश पहुंचाए और उन उम्मतों ने उन्हें क्या जवाब दिया.
(9) रसूलों को भी और उनकी उम्मतों को भी कि उन्होंने दुनिया में क्या किया.
(10) इस तरह कि अल्लाह तआला एक तराज़ू क़ायम फ़रमाएगा जिसका हर पलड़ा इतना विस्तृत होगा जितना पूर्व और पश्चिम के बीच विस्तार है. इब्ने जौज़ी ने कहा कि हदीस में आया है कि हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने तराज़ू (मीज़ान) देखने की दरख़्वास्त की. जब मीज़ान दिखाई गई और आपने उसके पलड़ों का विस्तार देखा तो अर्ज़ किया यारब, किसकी ताक़त है कि इनको नेकियों से भर सके. इरशाद हुआ कि ऐ दाऊद, मैं जब अपने बन्दों से राज़ी होता हूँ तो एक खजूर से इसको भर देता हूँ. यानी थोड़ी सी नेकी भी क़ुबूल हो जाए तो अल्लाह के फ़ज़्ल से इतनी बढ़ जाती है कि मीज़ान को भर दे.
(11) नेकियाँ ज़्यादा हुई.
(12) और उनमें कोई नेकी न हुई. यह काफ़िरों का हाल होगा जो ईमान से मेहरूम है और इस वजह से उनका कोई अमल मक़बूल नहीं.
(13) कि उनको छोड़ते थे, झुटलाते थे, उनकी इताअत से मुंह मोड़ते थे.
(14) और अपनी मेहरबानी से तुम्हें राहतें दीं, इसके बावुजूद तुम…
(15) शुक्र की हक़ीक़त, नेअमत का तसव्वुर और उसका इज़हार है और नाशुक्री, नेअमत को भूल जाना और उसको छुपाना.
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