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surah Kafirun

Soorah Kafiroon In Hindi | सूरह काफिरून तर्जुमा व तफसीर

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सूरह काफिरून मक्की है और इस में 6 आयतें शामिल हैं

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दोस्तों ! सूरह काफिरुन ( Soorah Kafiroon In Hindi ) आपने नमाज़ में या तिलावत के वक़्त खूब पढ़ी होगी लेकिन क्या आप ने कभी जानने की कोशिश की कि इसमें पैग़ाम क्या है और ये कब नाजिल हुई तो आप को ये जानना चाहिए कि अल्लाह ने इस में क्या नाजिल किया है

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नोट 👉👉👉 जो जाहिल बदमजहब लोग कहते हैं की काफिर को काफिर मत कहो ना जाने कब ईमान ले आये जबकि कुरान शरीफ खुललमखुलला काफिर को
काफिर कह रहा है यह कुरान शरीफ का हुक्म है मुसलमानों याद रहे आधा अधूरा इलम इंसान को गुमराह कर देता हैं इसी वजह से आज मुसलमानों में फिरकापरसती उरुज पर हैं फिरकापरसती मिटाने के लिए मुककमल इलम हासिल करो
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बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम

1.कुल या अय्युहल काफिरून
2.ला अ अबुदु मा ताबुदून
3.वला अन्तुम आ बिदूना मा अ अबुद
4.वला ना आबिदुम मा अबद्तुम
5.वला अन्तुम आबिदूना मा अअ बुद
6.लकुम दीनुकुम वलिय दीन


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English Me
Bismilla Hiraahma Nir Rahaeem

1.Qul Ya Ayyuhal Kaafiroon

2.La Aa Budu Ma Tabudoon

3.Wala Auntum Abidoona Ma Aabud

4.Ana Abidum Ma Abadtum

5.Wala Antum Aabidoona Ma Aabud

6.Lakum Deenukum Waliya Deen

Translation तरजुमा

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत बड़ा मेहरबान व निहायत रहम वाला है।

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1.आप कह दीजिये ऐ काफिरो

2.न तो मैं उस की इबादत करता हूँ जिस की तुम पूजा करते हो

3.और न तुम उसकी इबादत करते हो जिसकी मैं इबादत करता हूँ

4.और न मैं उसकी इबादत करूंगा जिसको तुम पूजते हो

5.और न तुम ( मौजूदा सूरते हाल के हिसाब से ) उस खुदा की इबादत करने वाले हो जिसकी मैं इबादत करता हूँ

6.तो तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और मेरे लिए मेरा दीन

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Tafseer Wa Tashreeh
रसूलुल लाह सल्लाल लाहू अलैहि वसल्लम ने जब मक्का में लोगों को इस्लाम की तरफ बुलाना शुरू किया तो अगरचे कुछ लोगों ने ही इस्लाम कुबूल किया लेकिन मुशरिक लोगों की एक बड़ी तादाद का बुत परस्ती ( बुतों की पूजा ) पर से यकीन कम होने लगा और उन के ज़हेन में ये सवाल खड़ा होने लगा कि हम जिस मज़हब को मान रहे हैं क्या वाकई सच्चा मज़हब है ?

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मक्का के सरदारों ने जब ये हालत देखी तो मुसलमानों पर तकलीफ देने के सारे हथियार आजमाने लगे , मगर जब उन्होंने तजरबा कर लिया कि ईमान का नशा एक ऐसा नशा है जो उतारे नहीं उतरता तो उन्होंने लालच देने का और आपस में मुसलिहत का तरीका इख्तियार करने की कोशिश की |


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AL KAAFIROON SOORAH KAB NAZIL HUI

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मक्का के सरदारों का एक गिरोह नबी (ﷺ) . की खिदमत में हाज़िर हुआ और कहा : आओ हम इस बात पर सुलह कर लें कि जिस खुदा की आप इबादत करते हैं हम भी उस की इबादत किया करेंगे और जिन माबूदों की हम पूजा किया करते हैं आप भी उन की इबादत करें और तमाम मामलात में एक दुसरे के शरीक हो जाएँ तो जिस मज़हब को तुम लेकर आए हो अगर उस में खैर होगी तो हम भी इस में शरीक हो जायेंगे और जिस मज़हब पर हम चल रहे हैं अगर उस में खैर है तो तुम उस को अपना लोगे उसी मौके पर ये सूरत नाजिल हुई

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एक और रिवायत में है की उन्होंने इबादत को साल में तकसीम करने को कहा कि एक साल तुम हमारे माबूदों की इबादत करो और एक साल हम तुम्हारे खुदा की इबादत करें ( तफसीरे क़ुरतुबी )

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ज़ाहिर है ये बात कुबूल करने लायक न थी जिस तरह रौशनी और तारीकी एक जगह नहीं रह सकते उसी तरह ये भी मुमकिन नहीं कि एक शख्स एक वक़्त में तौहीद का भी क़ायल हो


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Gair Muslimon Ke Saath Quraan Ka Maamla

कुराने मजीद ने ऐसे समाज के लिए जिसमें कई मज़हब के मानने वाले लोग हों तो उसमें सुलह का एक दूसरा फार्मूला पेश किया कि जो लोग तौहीद पर यकीन रखते हों वो अल्लाह की इबादत किया करें और जो शिर्क पर कायम हैं तो मुसलमान उन पर जोर ज़बरदस्ती न करें बल्कि उनको अपने मज़हब पर अमल करने दें ज़िन्दगी के दुसरे मसाइल में मुस्लमान अपने मज़हबी तरीके पर अमल करें और गैर मुस्लिम अपने तरीके पर | इसी लिए मुसलमानों ने हमेशा यही अपना तरीका रखा | |

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नबी ﷺ जब मदीना तशरीफ़ लाये तो इसी कानून के मुताबिक आप स.अ. ने यहूदी और मुसलमानों के दरमियान मुआहदा कराया |

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उलमा ने भी मुसलमान मुल्क में बसने वाली गैर मुस्लिम minorities के लिए यही कानून इख्तियार किया कि उनको अपने मज़हब पर अमल करने की आज़ादी होगी आज कल योरोपियन थिंकर्स इस कानून को मगरिब की देन बताते हैं मगर ये गलत है जिस वक़्त दुनिया में इसाई कौमें यहूदियों पर ज़ुल्म ढा रही थीं और जब खुद इसाई फिरकों में उन को जिंदा जला देने की सजा दी जा रही थी जो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम. को खुदा का बेटा मानने को तैयार नहीं थे उस वक़्त इस्लाम ने इस मज़हबी रवादारी का तसव्वूर पेश किया |

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लेकिन इस रवादारी का हरगिज़ मतलब ये नहीं है कि मुसलमान अपनी पहचान खो दें और और दूसरों के रंग में रंग जाएँ , अपने दीन और अपनी पहचान पर बाक़ी रहना और दूसरों के मज़हबी मामलात में दखलंदाज़ी से बचना ये असल रवादारी है |

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अफ़सोस कि आज कल कुछ मुसलमान रवादारी के नाम पर गैर इस्लामी रिवाजों को अपनाने लगे हैं वो लोगों को तो धोका दे सकते हैं लेकिन खुदा को नहीं |

Kya “Kaafir” Lafz Se Tauheen Hoti Hai

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इस सूरह में मक्का के मुशरिकों को “काफिरून” के लफ्ज़ से मुखातब किया है लेकिन तफसीर में कहीं ऐसी बात नहीं मिलती कि मक्का के मुशरिकों को ये लफ्ज़ नागवार गुज़रता था क्यूंकि काफिर ऐसे सख्स को कहते हैं जो तौहीद ( एक खुदा को मानना ) के अकीदे का इनकार करे जबकि कुछ गैर मुस्लिम ये समझते हैं कि “काफिर” कह कर उनकी तौहीन की जाती है |


(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)

Aafreen Seikh is an Software Engineering graduate from India,Kolkata i am professional blogger loves creating and writing blogs about islam.
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