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(तौबतन नसुह के माने व मतलब व उसकी तफसिर)कुरान कि 28 पारा सुरे तहरीम आयत 8 मे अल्लाह ने फरमाया -ऐ ईमान वालो अल्लाह कि तरफ तौबा करो एसी तौबा जो तौबतन नसुह हो, ,तौबतन नसुह -यानी एसी तौबा करो कि आगे लोगो के लिये तुम्हारी तौबा मिसाल बन जाए, लोग मिसालें और हमारी तौबा से नसीहत हासिल करे एसी तौबा को तौबतन नसुह कहते है, ,,,यु तो बहुत से इन्सान तौबा करते है गुनाहों से और गुनाह करना छोङ भी देते है एसी तौबा हि सच्ची तौबा कहलाती है लेकिन कुरान हुक्म दे रहा है हमे सच्ची तौबा के साथ-साथ तौबतन नसुह करने का, ,,,,,तौबतन नसुह करने वाला ईन्सान तौबा के बाद दुसरो के लिये नसीहत करने वाला और रहनुमा बन जाता है, ,,,,,,जैसे हजरत फुज़ेल बिन अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह जो पहले डाकू थे लोगो का माल लुटा करते थे और डाकू होने के बावजुद भी दिनभर रोज़े से रहते थे और रात भर ईबादत किया करते थे तौबा किया करते थे लेकिन काम बराबर बुराई का चालू था, ,लेकिन एक दिन आपनेकिसी इन्सान से कुरान कि ये आयते करीमा सुनी कि – क्या अब भी लोगो के दिल अल्लाह के ज़िक्र से पिघले नही है? ,,,बस ये आयत सुनते ही हजरत फुज़ेल बिन अयाज़ का दिल पिघल गया और फरमाने लगे कि मे भी तो रोज़ अल्लाह का ज़िक्र करता हु लेकिन मेरा दिल अब पिघल जाना चाहिये, ,बस आपने तौबा कि सच्ची तौबा तौबतन नसुह वाली तौबा, ,और अपने साथी डाकुओं से कहाँ कि मेने बुराईयो से तौबा करली है तुम अपनी राह लो, ,वो डाकू कहने लगे बुराईयो के कामो मे तो हम आपके साथ थे लेकिन अब जब नेकियो कि राह मे आपसे अलग नही जाएगे बल्कि हक भी तौबा करेगे और तौबतन नसुह करने कि बरकत से चालिस डाकुओं ने भी तौबा कि, ,,,,बस यही से लोगो कि रहनुमाई का काम चालू हो गया, ,,फिर आपकी ये हालत हो ग ई कि जिसका भी माल लुटा था उसका माल उसे लोटाते रहे,,,और इस कदर अल्लाह से खोफ व उम्मीद मे इबादत व रियाज़त मे लगे रहे कि अल्लाह के मेहबुब बन्दो व औलियाओ मे शुमार हो गये,,,,आपसे करामते साबित होने लगी और मुस्तजाबुद्दावात बन गये, ,,,नोट – मतलब ये कि सच्ची तौबा करने वाला तो सिर्फ गुनाह करना छोङता है लेकिन तौबतन नसुह करने वाला गुनाहों से एसा दुर होता है कि फिर कभी गुनाह का ईरादा भी नही और बल्कि वो यादे ईलाही मोहब्बते ईलाही इताअते अल्लाह व रसूल मे गुम हो जाता,,इबादात रियाज़ात मुजाहिदात तवक्कुल ईख्लास कि मन्ज़िलो को तय करता हुवा नज़र आता है आज़ीज़ी इन्केसारी इस्तेकामत उसका लिबास होती है,,,,ये तौबतन नसुह कि बरकते है यही तौबा करने का हुक्म है ,,,,

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