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*39 सूरए ज़ुमर – पाँचवां रूकू*

अल्लाह जानों को वफ़ात देता है उनकी मौत के वक़्त और जो न मरें उन्हें उनके सोते में. फिर जिस पर मौत का हुक्म फ़रमा दिया उसे रोक रखता है

(1)(1) यानी उस जान को उसके जिस्म की तरफ़ वापस नहीं करता और दूसरी

(2)(2) जिसकी मौत मुक़द्दर नहीं फ़रमाई, उसको एक निश्चित मीआद तक छोड़ देता है

(3)(3) यानी उसकी मौत के वक़्त तक बेशक इसमें ज़रूर निशानियां हैं सोचने वालों के लिये

(4) {42}(4) जो सोचें और समझें कि जो इसपर क़ादिर है वह ज़रूर मुर्दों को ज़िन्दा करने पर क़ादिर है क्या उन्हों ने अल्लाह के मुक़ाबिल कुछ सिफ़रिशी बना रखे हैं

(5)(5) यानी बुत, जिनके बारे में वो कहते थे कि ये अल्लाह के पास हमारे शफ़ीअ या सिफ़ारिशी हैं.तुम फ़रमाओ क्या अगरचे वो किसी चीज़ के मालिक न हो

(6)(6) न शफ़ाअत के न और किसी चीज़ के.और न अक़्ल रखें {43} तुम फ़रमाओ शफ़ाअत तो सब अल्लाह के हाथ में है

(7)(7) जो इसका माज़ून हो वही शफ़ाअत कर सकता है और अल्लाह तआला अपने बन्दों मे से जिसे चाहे शफ़ाअत का इज़्न देता है. बुतों को उसने शफ़ीअ (सिफ़ारिशी) नहीं बनाया और इबादत तो ख़ुदा के सिवा किसी की भी जायज़ नहीं, शफ़ीअ हो या न हो उसी के लिये है आसमानों और ज़मीन की बादशाही, फिर तुम्हें उसी की तरफ़ पलटना है(8){44}

(8) आख़िरत में.और जब एक अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है दिल सिमट जाते हैं उनके जो आख़िरत पर ईमान नहीं लाते(9),

(9) और वो बहुत तंग दिल और परेशान होते हैं और नागवारी का असर उनके चेहरों पर ज़ाहिर हो जाता है.और जब उसके सिवा औरों का ज़िक्र होता है

(10)(10) यानी बुतों का जभी वो ख़ुशियाँ मनाते हैं {45} तुम अर्ज़ करो ऐ अल्लाह आसमानों और ज़मीन के पैदा करने वाले, निहाँ (छुपे हुए) और अयाँ (ज़ाहिर) के जानने वाले, तू अपने बन्दों में फ़ैसला फ़रमाएगा जिसमें वो इख़्तिलाफ़ रखते थे

(11){46}(11) यानी दीन के काम में. इब्ने मुसैयब से नक़्ल है कि यह आयत पढ़कर जो दुआ मांगी जाए, क़ुबूल होती है.और अगर ज़ालिमों के लिये होता जो कुछ ज़मीन में है सब और उसके साथ उस जैसा

(12)(12) यानी अगर फ़र्ज़ किया जाए कि काफ़िर सारी दुनिया के माल और ज़ख़ीरों के मालिक होते और इतना ही और भी उनके क़ब्ज़े में होता.तो ये सब छुड़ाई (छुड़ाने) में देते क़यामत के रोज़ के बड़े अज़ाब से(13)
(13) कि किसी तरह ये माल देकर उन्हें इस भारी अज़ाब से छुटकारा मिल जाए.और उन्हें अल्लाह की तरफ़ से वह बात ज़ाहिर हुई जो उनके ख़याल में न थी (14){47}
(14) यानी ऐसे ऐसे सख़्त अज़ाब जिनका उन्हें ख़याल भी न था. इस आयत की तफ़सीर में यह भी कहा गया है कि वो गुमान करते होंगे कि उनके पास नेकियां हैं और जब कर्मों का लेखा खुलेगा तो बुराईयाँ और गुनाह ज़ाहिर होंगे.और उनपर अपनी कमाई हुई बुराइयां खुल गई

(15)(15) जो उन्हों ने दुनिया में की थीं. अल्लाह तआला के साथ शरीक करना और उसके दोस्तों पर ज़ुल्म करना वग़ैरह.और उनपर आ पड़ा वह जिसकी हंसी बनाते थे(16){48}

(16) यानी नबीये करीम अलैहिस्सलातो वस्सलाम के ख़बर देने पर वो जिस अज़ाब की हंसी बनाया करते थे. वह उतर गया और उसमें घिर गया.फिर जब आदमी को कोई तकलीफ़ पहुंचती है तो हमें बुलाता है फिर जब उसे हम अपने पास से कोई नेअमत अता फ़रमाएं, कहता है यह तो मुझे एक इल्म की बदौलत मिली है(17),

(17) यानी मैं मआश यानी रोज़ी का जो इल्म रखता हूँ उसके ज़रिये से मैं ने यह दौलत कमाई जैसा कि क़ारून ने कहा था बल्कि वह तो आज़माइश है (18)(18) यानी यह नेअमत अल्लाह तआला की तरफ़ से परीक्षा और आज़माइश है कि बन्दा उसपर शुक्र करता है या नाशुक्री.मगर उनमें बहुतों को इल्म नहीं (19) {49}

(19) कि यह नेअमत और अता इस्तिदराज और इम्तिहान है उनसे अगले भी ऐसे ही कह चुके(20)

(20) यानी यह बात क़ारून ने भी कही थी कि यह दौलत मुझे अपने इल्म की बदौलत मिली और उसकी क़ौम उसकी इस बकवास पर राज़ी रही थी तो वह भी मानने वालों मे गिनी गई.तो उनका कमाया उनके कुछ काम न आया {50} तो उनपर पड़ गई उनकी कमाइयों की बुराइयां (21)

(21) यानी जो कुकर्म उन्हों ने किये थे. उनकी सज़ाएं और वो जो उनमें ज़ालिम हैं, बहुत जल्द उनपर पड़ेगी उनकी कमाइयों की बुराइयां और क़ाबू से नहीं निकल सकते(22){51}क्या उन्हें मालूम नहीं कि अल्लाह रोज़ी कुशादा करता है जिसके लिये चाहे और तंग फ़रमाता है, बेशक इसमें ज़रूर निशानियां हैं ईमान वालों के लिये {52}

(22) चुनांन्चे वो सात वर्ष दुष्काल की मुसीबत में गिरफ़तार रख़े गए.

Noor Saba

Asalam-o-alaikum , Hi i am noor saba from Jharkhand ranchi i am very passionate about blogging and websites. i loves creating and writing blogs hope you will like my post khuda hafeez Dua me yaad rakhna.

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Noor Saba

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