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(1) और दरिद्रता और भुखमरी की मुसीबत में जकड़ा.

(2) और कुफ़्र और बुराइयों से बाज़ आएं. फ़िरऔन ने अपनी चार सौ बरस की उम्र में तीन सौ बीस साल तो इस आराम के साथ गुज़ारे थे कि इस मुद्दत में कभी दर्द या बुख़ार या भूख में नहीं पड़ा था. अब दुष्काल की सख़्ती उनपर इसलिये डाली गई कि वो इस सख़्ती ही से खुदा को याद करें और उसकी तरफ़ पलटें. लेकिन वो अपने कुफ़्र में इतने पक्के हो चुके थे कि इन तकलीफ़ों से भी उनकी सरकशी बढ़ती ही रही.

(3) और सस्ताई व बहुतात व अम्न और आफ़ियत होती.

(4) यानी हम इसके मुस्तहिक़ यानी हक़दार ही हैं, और इसको अल्लाह का फ़ज़्ल न मानते और अल्लाह का शुक्र न अदा करते.

(5) और कहते कि ये बलाएं इनकी वजह से पहुंचीं. अगर ये न होते तो ये मुसीबतें न आतीं.

(6) जो उसने लिख दिया है, वही पहुंचता है. और यह उनके कुफ़्र के कारण है. कुछ मुफ़्फसिरों का कहना है कि मानी ये हैं कि बड़ी शामत तो वह है जो उनके लिये अल्लाह के यहाँ है, यानी दोज़ख़ का अज़ाब.

(7) जब उनकी सरकशी यहाँ तक पहुंची तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनके हक़ में बददुआ की आपकी दुआ क़ुबूल हुई.

(8) जब जादूगरों के ईमान लाने के बाद भी फ़िरऔनी अपने कुफ़्र और सरकशी पर जमे रहे, तो उन पर अल्लाह की निशानियाँ एक के बाद एक उतरने लगीं. क्योंकि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दुआ की थी कि या रब, फ़िरऔन ज़मीन में बहुत सरकश हो गया है और उसकी क़ौम ने एहद तोड़ा है, उन्हें ऐसे अज़ाब में जकड़, जो उनके लिये सज़ा हो, और मेरी क़ौम और बाद वालों के लिये सबक़. तो अल्लाह तआला ने तूफ़ान भेजा, बादल आया, अन्धेरा हुआ, कसरत से बारिश होने लगी, फ़िरऔन के घरों में पानी भर गया, यहाँ तक कि वो उसमें खड़े रह गए और पानी उनकी गर्दन की हंसलियों तक आ गया. उनमें जो बैठा डूब गया, न हिल सकते थे, न कुछ काम कर सकते थे. सनीचर से सनीचर तक, सात रोज़ तक इसी मुसीबत में रहे. हालांकि बनी इस्त्राईल के घर उनके घरों से मिले हुए थे, उनके घरों में पानी न आया. जब ये लोग तंग आ गए तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया, हमारे लिये दुआ फ़रमाइये कि यह मुसीबत दूर हो तो हम आप पर ईमान लाएं और बनी इस्त्राईल को आपके साथ भेज दें. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दुआ फ़रमाई. तूफ़ान की मुसीबत दूर हुई. ज़मीन में वह हरियाली आई जो पहले कभी न देखी थी. खेतियाँ ख़ूब हुई, दरख़्त ख़ूब फले. तो फ़िरऔनी कहने लगे, यह पानी तो नेअमत था और ईमान न लाए. एक महीना तो ठीक से गुज़रा, फिर अल्लाह तआला ने टिड्डी भेजी. वह खेतियाँ और फल, दरख़्तों के पत्ते, मकानों के दरवाज़ें, छतें, तख़्ते, सामान, यहाँ तक कि लोहे की कीलें तक खा गई और फ़िरऔनियों के घरों में भर गई. अब मिस्त्रियों ने परेशान होकर फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से दुआ की दरख़्वास्त की और ईमान लाने का वादा किया. उस पर एहद लिया. सात दिन यानी सनीचर तक टिड्डी की मुसीबत में जकड़े रहे, फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की दुआ से छुटकारा पाया. खेतियाँ और फल जो बाक़ी रह गए थे, उन्हें देखकर कहने लगे, ये हमें काफ़ी हैं, हम अपना दीन नहीं छोड़ते, चुनांचे ईमान न लाए और एहद पूरा न किया और अपने बुरे कर्मों में लग गए. एक महीना ठीक से गुज़रा. फिर अल्लाह तआला ने जूंएं या घुन का अज़ाब उतारा. कुछ का कहना है कि जूंएं, कुछ कहते हैं घुन, कुछ कहते हैं एक और छोटा कीड़ा. इस कीड़े ने जो खेतियाँ और फल बाक़ी बचे थे वह खा लिये. कपड़ों में घुस जाता था और खाल को काटता था. खाने में भर जाता था. अगर कोई दस बोरी गेहूँ चक्की पर ले जाता तो तीन सेर वापस लाता, बाक़ी सब कीड़े खा जाते. ये कीड़े फ़िरऔनियों के बाल, पलकें, भौंवें चाट गए, जिस्म पर चेचक की तरह भर जाते. सोना दूभर कर दिया था. इस मुसीबत से फ़िरऔनी चीख़ पड़े और उन्होंने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया हम तौबह करते हैं. आप इस बला के दूर होने की दुआ फ़रमाइये. चुनांचे सात रोज़ के बाद यह मुसीबत भी हज़रत की दुआ से दूर हुई, लेकिन फ़िरऔनियों ने फिर एहद तोड़ा और पहले से ज़्यादा बुरे काम करने लगे. एक महीना अम्न में गुज़रने के बाद फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने बद दुआ की तो अल्लाह तआला ने मैंडक भेजे और यह हाल हुआ कि आदमी बैठता था तो उसकी बैठक में मैंडक भर जाते थे. बात करने के लिये मुंह खोलता तो मैंडक कूद कर मुंह में पहुंचता. हांडियों में मेंडक, खानों में मेंडक, चूल्हों में मेंडक भर जाते थे, आग बुझ जाती थी. लेटते थे तो मैंडक ऊपर सवार होते थे. इस मुसीबत से फ़िरऔनी रो पड़े और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से अर्ज़ की, अबकी बार हम पक्की तौबह करते हैं. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनसे एहद लिया और दुआ की तो सात दिन बाद यह मुसीबत भी दूर हुई. एक महीना आराम से गुज़रा, लेकिन फिर उन्होंने एहद तोड़ दिया और अपने कुफ़्र की तरफ़ लौटे. फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने बददुआ फ़रमाई तो तमाम कुंओं का पानी, नेहरों और चश्मोंका पानी, नील नदी का पानी, यहाँ तक कि उनके लिये हर पानी ख़ून बन गया. उन्होंने फ़िरऔन से इसकी शिकायत की तो कहने लगा कि मूसा ने जादू से तुम्हारी नज़र बन्दी कर दी. उन्होंने कहा, कैसी नज़र बन्दी, हमारे बरतनों में ख़ून के सिवा पानी का नाम निशान ही नहीं. तो फ़िरऔन ने हुक्म दिया कि मिस्त्री बनी इस्त्राईल के साथ एक ही बर्तन से पानी लें. तो जब बनी इस्त्राईल निकालते तो पानी निकलता, मिस्त्री निकालते तो उसी बर्तन से खून निकलता, यहाँ तक कि फ़िरऔनी औरतें प्यास से आजिज़ होकर बनी इस्त्राईल की औरतों के पास आई, उनसे पानी मांगा तो वह पानी उनके बर्तन में आते ही ख़ून हो गया. तो फ़िरऔनी औरतें कहने लगीं कि तू अपने मुंह में पानी लेकर मेरे मुंह में कुल्ली कर दे. जब तक वह पानी इस्त्राईली औरत के मुंह में रहा, पानी था, जब फ़िरऔनी औरत के मुंह में पहुंचा, ख़ून हो गया. फ़िरऔन ख़ुद प्यास से परेशान हुआ तो उसने गीले दरख़्तों की नमी चूसी, वह नमी मुंह में पहुंचते ही ख़ून हो गई. सात रोज़ तक ख़ून के सिवा कोई चीज़ पीने को न मिली तो फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से दुआ की दरख़्वास्त की और ईमान लाने का वादा किया. हज़रत मूसा ने दुआ फ़रमाई. यह मुसीबत भी दूर हुई मगर ईमान फिर भी न लाए.
(9) एक के बाद दूसरी और हर अज़ाब एक हफ़्ता क़ायम रहता और दूसरे अज़ाब से एक माह का फ़ासला होता.

(10) और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान न लाए.

(11) कि वह आपकी दुआ क़ुबूल फ़रमाएगा.

(12) यानी नील नदी में. जब बार बार उन्हें अज़ाबों से निजात दी गई और वो किसी एहद पर क़ायम न रहे और ईमान न लाए और कुफ़्र न छोड़ा, तो वह मीआद पूरी होने के बाद, जो उनके लिये मुक़र्रर फ़रमाई गई थी, उन्हें अल्लाह तआला ने डुबो कर हलाक कर दिया.
(13) बिल्कुल भी ध्यान न देते और तवज्जह न करते थे.

(14) यानी बनी इस्त्राईल को.

(15) यानी मिस्त्र और शाम.
(16) नहरों, दरख़्तों, फलों, खेतियों और पैदावर की बहुतात से.

(17) इन तमाम इमारतों, महलों और बाग़ों को.

(18) फ़िरऔन और उसकी क़ौम को दसवीं मुहर्रम के डुबाने के बाद.

(19) और उनकी इबादत करते थे. इब्ने जरीह ने कहा कि ये बुत गाय की शक्ल के थे. उनको देखकर बनी इस्त्राईल.

(20) कि इतनी निशानियाँ देखकर भी न समझे कि अल्लाह एक है, उसका कोई शरीक नहीं. उसके सिवा कोई पूजनीय नहीं, और किसी की इबादत जायज़ नहीं.

(21) बुत परस्त, मूर्ति पूजक.
(22) यानी ख़ुदा वह नहीं होता जो तलाश करके बना लिया जाए, बल्कि ख़ुदा वह है जिसने तुम्हें बुज़ुर्गी दी क्योंकि वह बुज़ुर्गी देने और एहसान पर सक्षम है, तो वही इबादत के लायक़ है.

(23) यानी जब उसने तुम पर ऐसी अज़ीम नेअमतें फ़रमाई तो तुम्हें कब सजता है कि तुम उसके सिवा और किसी की इबादत करो.

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