*33 सूरए अहज़ाब- आठवाँ रूकू*
ऐ नबी अपनी बीबियों और बेटियों और मुसलमानों की औरतों से फ़रमा दो कि अपनी चादरों का एक हिस्सा अपने मुंह पर डाले रहें
(1)(1) और सर और चेहरे को छुपाएं, जब किसी आवश्यकता के लिये उनको निकलना हो.यह इससे नज़्दीक तर है कि उनकी पहचान हो
(2)(2) कि ये आज़ाद औरतें हैं.तो सताई न जाएं
(3)(3) और मुनाफ़िक़ लोग उनके पीछे न पड़े मुनाफ़िक़ों की यह आदत थी कि वो दासियों को छेड़ा करते थे इसलिये आज़ाद औरतों को हुक्म दिया कि वो चादर से बदन ढाँप कर सर और चेहरे को छुपाकर दासियों से अपनी हालत अलग बना लें और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है{59} अगर बाज़ न आए मुनाफ़िक़ (दोग़ले)
(4)(4) अपनी दोहरी प्रवृति से और जिनके दिलों में रोग है
(5)(5) और जो बुरे ख़याल रखते हैं यानी बुरा काम करते हैं वो अगर अपनी बदकारी से बाज़ न आए और मदीने में झूट उड़ाने वाले
(6)(6) जो इस्लामी लश्करों के बारे में झूटी ख़बरें उड़ाया करते थे और यह मशहूर किया करते थे कि मुसलमानों को पराजय हो गई, या वो क़त्ल कर डाले गए, या दुश्मन चढ़ा चला आ रहा है. और इससे उनका उद्देश मुसलमानों का दिल तोड़ना और उनको परेशानी में डालना होता था. उन लोगों के बारे में इरशाद फ़रमाया जाता है कि अगर वो इन हरकतों से बाज़ न आए.तो ज़रूर हम तुम्हें उन पर शह देंगे
(7)(7) और तुम्हें उनपर क़ब्ज़ा दे देंगे.फिर वो मदीने में तुम्हारे पास न रहेंगे मगर थोड़े दिन
(8){60}(8) फिर मदीनए तैय्यिबह उनसे ख़ाली करा लिया जाएगा और वहाँ से निकाल दिये जाएंगे फटकारे हुए जहाँ कहीं मिलें पकड़े जाएं और गिन गिन कर क़त्ल किये जाएं {61} अल्लाह का दस्तूर (तरीक़ा) चला आता है उन लोगों में जो पहले गुज़र गए
(9)(9) यानी पहली उम्मतों के मुनाफ़िक़ लोग, जो ऐसी हरकतें करते थे, उनके लिये भी अल्लाह का तरीक़ा यही रहा कि जहाँ पाएं जाएं, मार डाले जाएं.
और तुम अल्लाह का दस्तूर हरगिज़ बदलता न पाओगे {62} लोग तुम से क़यामत को पूछते हैं
(10)(10) कि कब क़यामत होगी. मुश्रिक लोग हंसी उड़ाने के अन्दाज़ में रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से क़यामत का वक़्त पूछा करते थे गोया कि उन्हें बहुत जल्दी है और यहूदी इसको आज़माइश के तौर पर पूछते थे क्योंकि तौरात में इसका इल्म छूपाकर रखा गया था तो अल्लाह तआला ने अपने नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को हुक्म फ़रमाया तुम फ़रमाओ उसका इल्म तो अल्लाह ही के पास है, और तुम क्या जानो शायद क़यामत पास ही हो
(11){63}(11) इसमें जल्दी करने वालों को चेतावनी और यहूदियों को चुप कराना और उनकी ज़बान बन्द करना है बेशक अल्लाह ने काफ़िरों पर लअनत फ़रमाई और उनके लिये भड़कती आग तैयार कर रखी है{64} उसमें हमेशा रहेंगे, उसमें से कोई हिमायत पाएंगे न मददगार
(12){65}(12) जो उन्हें अज़ाब से बचा सके.जिस दिन उनके मुंह उलट उलट कर आग में तले जाएंगे कहते होंगे हाय किसी तरह हमने अल्लाह का हुक्म माना होता और रसूल का हुक्म माना होता
(13){66}(13) दुनिया में, तो हम आज इस अज़ाब में न जकड़े गए होते और कहेंगे ऐ हमारे रब हम अपने सरदारों और अपने बड़ों के कहने पर चले
(14)(14) यानी क़ौम के सरदारों में और बड़ी उम्र के लोगों और अपनी जमाअत के आलिमों के, उन्होंने हमें कुफ़्र की तलक़ीन की.तो उन्होंने हमें राह से बहका दिया {67} ऐ रब हमारे उन्हें आग का दूना अज़ा दे
(15)और उनपर बड़ी लअनत कर{68}(15) क्योंक वो ख़ुद भी गुमराह हुए और उन्होंने दूसरों को भी गुमराह किया.
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