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Bakra Eid

बकरीद” जानिए इस दिन क्‍यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी ?

Eid ul Adha: बकरीद (Bakrid) का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है. इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है. इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है. इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं.

#खास बातें —
बकरीद इस्‍लाम धर्म का प्रमुख त्‍योहार है
बकरीद को कुबार्नी के त्‍योहार के रूप में मनाया जाता है
इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है

बकरा ईद (Bakra Eid), बकरीद (Bakrid), ईद-उल-अजहा (Eid Al Adha) या ईद-उल जुहा (Eid Ul Adha) भारत में 12 अगस्‍त यानी कल मनाई जाएगी. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 12वें महीने धू-अल-हिज्जा की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाती है. यह तारीख रमजान के पवित्र महीने के खत्‍म होने के लगभग 70 दिनों के बाद आती है. बकरीद का त्‍योहार मुख्‍य रूप से कुर्बानी के पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन बकरे की कुर्बानी देने दी जाती है. आपको बता दें कि इस्‍लाम धर्म में मीठी ईद के बाद बकरीद सबसे प्रमुख त्‍योहार है.

#बकरीद का महत्‍व
बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है. इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है. इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है. इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिए जाते हैं. ऐसा करके मुस्लिम इस बात का पैगाम देते हैं कि अपने दिल की करीबी चीज़ भी हम दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं.

#बकरीद क्‍यों मनाई जाती है?
इस्‍लाम को मानने वाले लोगों के लिए बकरीद का विशेष महत्‍व है. इस्‍लामिक मान्‍यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे. तब अल्लाह ने उनके नेक जज्‍बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया. यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है. इसके बाद अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया.

#क्यों दी जाती है कुर्बानी?
हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी. जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्‍दा खड़ा हुआ देखा. बेदी पर कटा हुआ दुम्बा (सउदी में पाया जाने वाला भेंड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है.

#जानें, बकरीद के दिन क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी

इस्लाम धर्म में हर साल दो ईद मनाई जाती है। एक ‘ईद-उल-फितर’ और दसूरी ‘ईद-उल-जुहा’ यानी ‘बकरीद’। ईद-उल-फितर में लोग अपने घर में सिवाईयां बनाते हैं वहीं बकरीद पर मुस्लिम लोग बकरे की कुर्बानी देते हैं। बकरीद, ईद-उल-फितर के 70 दिन बाद आती है। बकरीद के दिन मुसलमान बकरे, भैंस या कहीं कहीं ऊट की भी कुर्बानी देते हैं। ज्यादातर लोग बकरीद पर बकरे की कुर्बानी ही देते हैं।

बकरीद से कुछ दिन पहले ही लोग बकरे को खरीदकर अपने घर ले आते हैं उसे पालते पोस्ते हैं और फिर बकरीद वाले दिन उसे जिबे यानी कुर्बान करते हैं। इस दिन लोग अपनी आय के मुताबिक जकात और फितरा भी करते हैं। इस्लाम में कहा गया है कि कोई भी त्योहार मनाते हुए यह ध्यान रखा जाना जरूरी है कि उनके पड़ोसी घर में भी उतनी ही खुशी के साथ त्योहार मन रहा हो।

#जानें क्यों बकरीद के दिन दी जाती है बकरे की कुर्बानी:

इस्लाम के मुताबिक, अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया था. हजरत इब्राहिम को लगा कि उन्हें सबसे प्यारा तो उनका बेटा है इसलिए उन्होंने अपने बेटे की ही बलि देने का फैसला किया। हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। लेकिन जब कुर्बानी देने के बाद उन्होंने अपनी आंखों पर से पट्टी हटाई तो देखा कि उनका बेटा जिंदा है और उनके सामने जिंदा खड़ा है। उन्होंने देखा कि बेटे की जगह दुम्बा (साउदी में पाया जाने वाला भेंड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है।

#ईद-उल-अजहा : त्याग और समर्पण का त्योहार

ईद भाइचारे, त्याग, समर्पण और इंसानियत का पैगाम देती है और सबको मिलजुलकर रहने और भलाई करने की सीख देती हैं।

ईद-उल-अजहा को कई नामों से जाना जाता है। ईदे-अजहा को नमकीन ईद भी कहा जाता है और इसी ईद को ईदे करबां भी कहा जाता है। नमकीन ईद कहे जाने का अर्थ यह है कि इसे नमकीन पकवानों के साथ मनाया जाता है। जबकि कुरबानी से जुड़ी होने की वजह से इसे ईदे कुरबां भी कहा जाता है। बच्चे आमतौर पर इसे बकरा ईद भी कहते हैं।

अमूमन यह माना जाता है कि इस ईद का संबंध बकरे से है। वास्तव में, ‘बकर’ का अर्थ है बड़ा जानवर, जो जिबह किया जाता है। ईदे कुरबां का अर्थ है बलिदान की भावना। अरबी में ‘कर्ब’ नजदीकी या बहुत पास रहने को कहते हैं। अर्थात्‌ इस अवसर पर भगवान पुरुष के करीब हो जाता है।

कुरबानी उस पशु के जिबह करने को कहते हैं, जिसे इस हज के महीने में दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं तारीखों को खुदा को खुश करने के लिए हज की रस्म अदा करते समय जिबह (बलि) किया जाता है।

भाईचारे के इस त्योहार की शुरुआत तो अरब से हुई है मगर, ‘तुजके जहांगीरी’ में लिखा है- ‘जो जोश, खुशी और उत्साह भारतीय लोगों में ईद मनाने का है, वह तो समरकंद, कंधार, इस्फाहान, बुखारा, खुरासान, बगदाद और तबरेज जैसे शहरों में भी नहीं पाया जाता, जहां इस्लाम का जन्म भारत से पहले हुआ था।’

मुगल बादशाह जहांगीर अपनी रिआया (प्रजा) के साथ मिलकर ईदे-अजहा मनाते थे। गैर मुस्लिमों को बुरा न लगे, इसलिए ईद वाले दिन शाम को दरबार में उनके लिए विशेष शुद्ध वैष्णव भोजन हिन्दू बावर्चियों द्वारा बनाए जाते थे।

इस बात के प्रमाण हैं कि ईद मनाने की परंपरा भारत में मुगलों ने ही डाली है, इसीलिए ईद के दिन आजकल भारत में ऐसा नजारा देखने को मिलता है, जैसे कि यह सारे भारत वर्ष का अपना पर्व हो। यही भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा है।

#अज़हा, जानिए इस दिन बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई

मुस्लिम समुदाय में यह पर्व हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद के तौर पर मनाया जाता है। ईद ए कुर्बा का मतलब है बलिदान की भावना। अरबी भाषा में कर्ब का मतलब नजदीकी से होता है। मतलब यह ऐसा मौका होता है जब इंसान भगवान के काफी करीब रहता है। बकरीद पर्व का मुख्य उद्देश्य लोगों में जनसेवा और अल्लाह की सेवा के भाव को जगाना है। बकरीद का यह पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज को भी मान्यता देता है। इस्लाम के पांच फर्जों में हज भी शामिल है। हज यात्रा पूरी होने की खुशी में ईद-उल-जुहा का त्योहार मनाया जाता है। इस्लामिक नियम कहता है कि पहले अपना कर्ज उतारें, फिर हज पर जाएं और उसके बाद बकरीद मनाएं।

Aafreen Seikh is an Software Engineering graduate from India,Kolkata i am professional blogger loves creating and writing blogs about islam.
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